यमुनोत्री (Yamunotri), यमुना नदी का स्रोत स्थल (Origin of Yamuna River) है, और हिंदू धर्म में देवी यमुना का अपना स्थान है। यह गढ़वाल हिमालय में 3,293 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, और भारत के उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल मंडल के उत्तरकाशी जिले में स्थित है।, यमुनोत्री धाम उत्तरकाशी के लगभग 30 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। यह भारत के छोटा चार धाम तीर्थयात्रा के चार स्थलों में से एक है। यमुनोत्री का पवित्र तीर्थस्थल, यमुना नदी का स्रोत, गढ़वाल हिमालय का सबसे पश्चिमी तीर्थ है, जो बांदर पुंछ पर्वत के एक गुच्छे से घिरा है। वह यमुनोत्री में मुख्य आकर्षण देवी यमुना और जानकी चट्टी (7 किमी दूर) पर पवित्र स्थान के लिए समर्पित मंदिर है।
उत्तरकाशी जिले में समुद्रतल से 10610 फीट की ऊंचाई पर स्थित यमुनोत्री धाम (Yamunotri Dham) को हिमालय की चारधाम यात्रा का प्रथम पड़ाव और यमुना नदी का उद्गम माना गया है । हालांकि यमुना का वास्तविक उद्गम जमी हुई बफ की एक झील और हिमनद चंपासर ग्लेशियर है ,जो कालिंद पर्वत पर स्थित है । एक पौराणिक कथा के अनुसार , यमुनोत्री धाम असित मुनि का निवास था । यहां वर्तमान मंदिर का निर्माण जयपुर की महारानी ने कराया था । भूकंप से मंदिर का विध्वंस होने के बाद यमुनोत्री मंदिर का अधिकांश हिस्सा सन 1885 ईस्वी में यमुना नदी के बाएं किनारे पर यमुना के मंदिर का निर्माण गढ़वाल के राजा सुदर्शन शाह ने लकड़ी से बनवाया था और फिर वर्ष 1919 में टिहरी नरेश प्रताप शाह ने इसका पुनर्निर्माण कराया । मंदिर के गर्भगृह में देवी यमुना की काले संगमरमर की मूर्ति विराजमान है । वहां चट्टान से गिसी जलधाराएं ऊँ ध्वनि उत्पन्न करता है ।, वर्तमान स्वरुप के मंदिर निर्माण का श्रेय गढ़वाल नरेश प्रताप शाह को है। गंगा की तरह यमुना को हिंदुओं के लिए एक दिव्य मां का दर्जा दिया गया है और उन्हें भारतीय सभ्यता के पोषण और विकास के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है।
यमुनोत्री का इतिहास और किंवदंतियाँ (History and legends of Yamunotri)
यमुनोत्री (Yamunotri) के बारे मे वेदों , उपनिषदों और विभिन्न पौराणिक व्याख्यानों में विस्तार से वर्णन किया गया है । पुराणों में यमुनोत्री के साथ असित ऋषि की कथा जुड़ी हुई है । कहा जाता है की वृद्धावस्था के कारण ऋषि कुण्ड में स्रान करने के लिए नहीं जा सके तो उनकी श्रद्धा देखकर यमुना उनकी कुटिया मे ही प्रकट हो गई । इसी स्थान को यमुनोत्री कहा जाता है । कालिन्द पर्वत से निकलने के कारण इसे कालिन्दी भी कहते हैं । यमुनोत्री मे वर्तमान मंदिर जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में बनवाया था। परन्तु भूकम्प से एक बार इसका विध्वंस हो गया, तथा इसका पुर्ननिर्माण कराया गया।
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार पुराणों में यमुना सूर्य-पुत्री कही गयी हैं। सूर्य की छाया और संज्ञा नामक दो पत्नियों से यमुना, यम, शनिदेव तथा वैवस्वत मनु प्रकट हुए। इस प्रकार यमुना यमराज और शनिदेव की बहन हैं। सूर्य की पत्नी छाया से यमुना व यमराज पैदा हुए यमुना सर्वप्रथम जलरूप से कलिंद पर्वत पर आयीं, इसलिए इनका एक नाम कालिंदी भी हैं, तथा यम को मृत्यु लोक मिला। कहा जाता है की जो भी कोई माँ यमुना के जल मे स्नान करता है वह आकाल मृत्यु के भय से मुक्त होता है और मोक्ष को प्राप्त करता है । किंवदंती कहते है, की यमुना ने अपने भाई से भाईदूज के अवसर पर वरदान मांगा कि इस दिन जो यमुना में स्नान करे उसे यमलोक न जाना पड़े,अत: इस दिन यमुना तट पर यम की पूजा करने का विधान भी है । यमुनोत्री धाम को सकल सिद्धियों को प्रदान करने वाला कहा गया है। पुराणों में उल्लेख है कि भगवान श्रीकृष्ण की आठ पटरानियों में एक प्रिय पटरानी कालिंदी यमुना भी हैं। यमुना के भाई शनिदेव का अत्यंत प्राचीनतम मंदिर खरसाली में है।
यमुनोत्री मंदिर (Yamunotri Temple) के कपाट वैशाख माह की शुक्ल अक्षय तृतीया को खोले जाते और कार्तिक माह की यम द्वितीया को बंद कर दिए जाते हैं। भूगर्भ से उत्पन्न 80 डिग्री तक गर्म पानी के जल का कुंड सूर्य-कुंड और पास ही ठन्डे पानी का कुंड गौरी कुंड यहाँ सबसे उल्लेखनीय स्थल हैं|
यमुनोत्री (Yamunotri) पहुँचने पर यहाँ के मुख्य आकर्षण केंद्र यहाँ के जलकुण्ड हैं, जो ठन्डे और गरम जल से भरे हैं। इनमें सबसे तप्त जलकुण्ड का स्रोत मन्दिर से लगभग 20फीट की दूरी पर स्थित है, केदारखण्ड वर्णित ब्रह्मकुण्ड अब इसका नाम सूर्यकुण्ड हैं एवं तापक्रम लगभग 95 डिग्री सेल्सियस है, जो कि गढ़वाल के सभी तप्तकुण्ड में सबसे अधिक गरम है। इससे एक विशेष प्रकार की ध्वनि निकलती है, जिसे “ओम् ध्वनि”कहा जाता है। गहरा स्रोत होने के कारण इसमें आलू व चावल पोटली डालने पर पक जाते हैं, हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले की पार्वती घाटी में मणिकर्ण तीर्थ में स्थित ऐसे ही तप्तकुण्ड को “स्टीम कुकिंग” कहा जाता है। सूर्यकुण्ड के निकट दिव्यशिला है। जहाँ उष्ण जल नाली सी ढलान लेकर निचले गौरीकुण्ड में जाता है, इस कुण्ड का निर्माण जमुनाबाई ने करवाया था, इसलिए इसे जमुनाबाई कुण्ड भी कहते है। इसे काफी लम्बा चौड़ा बनाया गया है, ताकि सूर्यकुण्ड का तप्तजल इसमें प्रसार पाकर कुछ ठण्डा हो जाय और यात्री स्नान कर सकें। गौरीकुण्ड के नीचे भी तप्तकुण्ड है। यमुनोत्तरी से 4मील ऊपर एक दुर्गम पहाड़ी पर सप्तर्षि कुण्ड की स्थिति बताई जाती है। माना जाता है कि इस कुण्ड के किनारे सप्तॠषियों ने तप किया था।
यमुनोत्री कैसे पहुंचे (How to reach Yamunotri)
- फ्लाइट से : जॉली ग्रांट हवाई अड्डा यमुनोत्री का निकटतम हवाई अड्डा है जो 210 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जॉली ग्रांट एयरपोर्ट दैनिक उड़ानों के साथ दिल्ली से जुड़ा हुआ है। जॉली ग्रांट हवाई अड्डे से हनुमान चट्टी के लिए टैक्सी उपलब्ध हैं।
- ट्रेन से : यमुनोत्री के निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश और देहरादून हैं। देहरादून रेलवे स्टेशन यमुनोत्री से 175 किलोमीटर और ऋषिकेश रेलवे स्टेशन यमुनोत्री से 200 किलोमीटर पर स्थित है। यहाँ से टैक्सी और बसें ऋषिकेश, टिहरी गढ़वाल, उत्तरकाशी और बरकोट और कई अन्य स्थानों से हनुमान चट्टी के लिए उपलब्ध रहती हैं।
- सड़क से : यमुनोत्री धाम सीधे सड़कों से नहीं जुड़ा है और हनुमान चट्टी से ट्रेक शुरू होता है। ऋषिकेश से बस, कार अथवा टैक्सी द्वारा नरेंन्द्र नगर होते हुए यमुनोत्री के लिए 228 किलो मीटर की दूरी तय करते हुए फूलचट्टी तक पहुंचा जा सकता है। हनुमान चट्टी से मंदिर तक पहुंचने के लिए 8 किलो मीटर की चढ़ाई चढ़नी पड़ती हैं। यमुनोत्री तथा यात्रा मार्ग से समस्त प्रमुख स्थानो पर जीएमवीएन यात्री विश्राम गृह, निजी विश्राम गृह तथा धर्मशालाएं उपलब्ध रहते हैं।