फांसी गधेरा नैनीताल (Fanshi Gadhera Nainital) भाले ही यह नाम सुनकर थोड़ा अटपटा लगता है, मगर इस नाम के पीछे बहुत लंबा इतिहास दर्ज है। “गधेरा” उत्तराखंड (Uttarakhand) गढ़वाल (Garhwal) और कुमाऊं (Kumaun) में एकदम ढलान पर स्थित जगह को कहा जाता है जहां से पानी का बहाव नदी में मिलता है और अंग्रेज शासन काल में फांसी के लिए पहचाना जाने वाला यह गधेरा जिसे अब “फांसी गधेरा” (Fanshi Gadhera) के नाम से जाना जाता है दुनिया में अपनी सुंदरता से पहचान बनाने वाले झीलों का शहर नैनीताल (Nainital) में है। नाम इसका आज भी यही है, बस अब यह आबाद जगह है।
फांसी गधेरा नैनीताल (Fanshi Gadhera Nainital)
फांसी गधेरा (Fanshi Gadhera) काफी विशाल क्षेत्र है, जो करीब एक किमी वर्ग में फैला हुआ है। वर्तमान मेँ इस क्षेत्र में लो नि वि गेस्ट हाउस से लेकर विशाल सिनेमा हॉल और लंघम हॉस्टल है। भाले ही इस जगह का नाम पुकारने में अजीब सा लगे लेकिन नैनीताल (Nainital) की यह जगह लोगों के दिल में बस्ता है यह अपने घने बड़े जंगल और दिल को छूने वाले शांत और शीतल जगह के लिए जाना जाता है।
सेंट जोजफ कालेज का बोट स्टैंड भी यही मौजूद है। यह क्षेत्र प्राकृतिक सुंदरता के लिहाज से बेहद खुबसूरत ,सुन्दर और अद्भुत है। नैनीताल (Nainital) की ठंडी सड़क की सैर के लिए लोग इसी स्थान से होकर जाते हैं।
1857 की क्रांति बाघों के गढ़ को “फांसी गधेरा” नाम दे गई (Revolution of 1857 named the tiger stronghold “Fanshi Gadhera”)
फांसी गधेरा (Fanshi Gadhera) नैनीताल (Nainital) के सबसे खूबसूरत और अद्भुत नजारो वाले नैनी झील से लगा हुआ है और तल्लीताल से पश्चिम दिशा में पड़ता है। जब इस शहर में लोगों की बसावाट नहीं थी, तब उस दौर में यहां घने जंगल हुआ करता था और यह जंगली जानवर से लेकर बाघ रहा करते थे जिस कारण से वह रहने वाले स्थानीय लोग इस जगह को बाघों का गढ़ (Tiger Stronghold) नाम से पुकारते थे।
फांसी गधेरा नैनीताल में 1857 की क्रांति (Revolution of 1857 in Fanshi Gadhera Nainital)
जिस समय हैनरी रैमजे ने कमिश्नर का पद संभाला उसी समय उत्तर भारत में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह भी शुरू हो गया था। लगभग पूरा उत्तर भारत विद्रोह में जल रहा था। उसका असर उत्तराखंड में भी हुआ। हालांकि कतिपय इतिहासकारों एवं प्रशासनिक रिपोर्टं में उत्तराखंड में शांति की बात कही गयी है, लेकिन ऐसा नहीं था।
उत्तराखंड के कुमाऊं में कोटाबाग, कालाढूँगी, बाजपुर, हल्द्वानी, रुद्रपुर आदि स्थानों पर विद्रोहियों और अंग्रेजी सेना में संघर्ष हुआ। किसी प्रकार से अंग्रेजी सेना द्वारा हल्द्वानी की रक्षा हो पायी। अन्य स्थानों में विद्रोहियों का कब्जा हो गया। विद्रोहियों के हाथों भी कई सिपाही भी मारे गये थे। उसके बाद विद्रोहियों को गिरफ्तार किया गया। कई पर मुकदमे चले और बहुतों को फांसी पर लटका दिया गया। नैनीताल का फांसी गधेरा (Fanshi Gadhera) तब से प्रसिद्ध है जहां विद्रोहियों को फांसी दी जाती थी।
फांसी गधेरा (Fanshi Gadhera) नगर में बसावाट 1841 में शुरू हो गई थी। इसके बाद वर्ष 1857 में अंग्रेज शासकों ने इस जगह को विद्रोहियों को फांसी देने के लिए चुना। बताया जाता है कि 1857 की क्रांति के दौरान हल्द्वानी में काफी विद्रोह शुरू हो गया था और विद्रोह करने वाले करीब 40 लोगों को इस स्थान पर फांसी दी गई।
विद्रोहियों को पकड़ने में गोरखा सेना की भूमिका अहम रही थी। उस समय के क्रांतिकारियों ने तभी से इस स्थान को फांसी गधेरे (Fanshi Gadhera) के नाम से पुकारना शुरू कर दिया था, जो आज तक कायम है।
मृतकों की सुरंग फांसी गधेरा नैनीताल (Tunnel of the dead Fanshi Gadhera Nainital)
नैनीताल (Nainital) में MES (Military Engineer Services) के निरीक्षण में एक बंगला है जो एक पुरानी इमारत है और यह कम से कम 200 साल पुरानी मानी जाती है। कुछ साल पहले इसके मरम्मत कार्य के दौरान, इमारत के पास एक गुप्त सुरंग का पता लगा।
करीब से निरीक्षण करने और खुदाई करने पर पता चला, वहाँ एक जेल भी मिली। जिसके पास आज भी एक फंदा लटका हुआ है। जिस क्षेत्र में यह इमारत स्थित है, उसे फांसी गधेरा (Fanshi Gadhera) कहा जाता है, जिसका मतलब ‘मृतकों की सुरंग’ है।
शोध और अनुमान के मुताबिक, इमारत के पास की इस जगह का इस्तेमाल फांसी देने और हत्याओं को अंजाम देने के लिए किया जाता था। ब्रिटिश शासन के दौरान, विद्रोह करने वाले या फिर क्रांतिकारियों लोगों को यहाँ कैद में रखा जाता था। जहां उन्हें फांसी की सजा मिलने के बाद आसानी से सुरंग में फेंक दिया गया था। दिलचस्प बात यह है कि यह सुरंग नैनी झील में खुलती है। जाहिर है, हत्या या फांसी पर चढ़ाने का यह तरीका आसान था, और बगैर किसी गड़बड़ के हत्याओं को छुपाने का यह सबसे अच्छा तरीका था। तो अगली बार जब आप नैनी झील में नाव की सवारी कर रहें हो, तो उन सभी रहस्यों के बारे में सोचना ना भूलें जो झील अपने भीतर छुपाये है!