पिथौरागढ़ ( Pithoragarh) उत्तराखण्ड राज्य का एक प्रमुख शहर और कुमाऊं मंडल में स्थित एक जिला है। यह समुद्र तल से 1645 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। पिथौरागढ़ जिले के उत्तर में तिब्बत, पूर्व में नेपाल, दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्व में अल्मोड़ा, एवं उत्तर-पश्चिम में चमोली ज़िले पड़ते हैं | पिथौरागढ़ का पुराना नाम सोरघाटी है। सोर शब्द का अर्थ होता है– सरोवर। यहाँ पर माना जाता है कि पहले इस घाटी में सात सरोवर थे। दिन-प्रतिदिन सरोवरों का पानी सूखता चला गया और यहाँ पर पठारी भूमि का जन्म हुआ। पठारी भूमी होने के कारण इसका नाम पिथौरागढ़ (पठारों का गढ़) पड़ा। पिथौरागढ़ को छोटा कश्मीर (Mini Kashmir ) के नाम से भी जाना जाता है। अधिकांश लोगों का मानना है कि यहाँ राय पिथौरा (पृथ्वीराज_चौहान) की राजधानी थी। उन्हीं के नाम से इस जगह का नाम पिथौरागढ़ पड़ा। राय पिथौरा ने नेपाल से कई बार टक्कर ली थी। यही राजा पृथ्वीशाह के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
पिथौरागढ़ का इतिहास (History of Pithoragarh)
पिथौरागढ़ (Pithoragarh) में खस वंश का शासन रहा है, जिन्हें यहाँ के किले या कोटों के निर्माण का श्रेय जाता है। पिथौरागढ़ के इर्द-गिर्द चार किले हैं जिनका नाम भाटकोट, डूंगरकोट, उदयकोट तथा ऊँचाकोट है। खस वंश के बाद यहाँ कचूडी वंश (पाल-मल्लासारी वंश) का शासन हुआ तथा इस वंश का राजा अशोक मल्ला, बलबन का समकालीन था। इसी अवधि में राजा पिथौरा द्वारा पिथौरागढ़ स्थापित किया गया तथा इसी के नाम पर पिथौरागढ़ नाम भी पड़ा। इस वंश के तीन राजाओं ने पिथौरागढ़ से ही शासन किया तथा निकट के गाँव खङकोट में उनके द्वारा निर्मित ईंटों के किले को वर्ष 1960 में पिथौरागढ़ के तत्कालीन जिलाधीश ने ध्वस्त कर दिया। वर्ष 1622 के बाद से पिथौरागढ़ पर चन्द राजवंश का आधिपत्य रहा।
पिथौरागढ़ का संबंध पांडवों से भी है | अपने 14 वर्ष के वनवास के दौरान पांडवों इस इलाके में भी आए थे | पिथौरागढ़ में पांडु पुत्र नकुल को समर्पित एक मंदिर भी है , जिसका नाम नकुलेश्वर मंदिर है, और यह उत्तराखंड राज्य के प्रसिद्ध हिलस्टेशन के रूप में पिथौरागढ़ का भी एक मुख्य पर्यटक स्थल है |
पिथौरागढ़ के इतिहास का एक अन्य विवादास्पद वर्णन है। एटकिंसन के अनुसार, चंद वंश के एक सामंत पीरू गोसाई ने पिथौरागढ़ की स्थापना की। ऐसा लगता है कि चंद वंश के राजा भारती चंद के शासनकाल (वर्ष 1437 से 1440 ) में उसके पुत्र रत्न चंद ने नेपाल के राजा दोती को परास्त कर सौर घाटी पर कब्जा कर लिया एवं वर्ष 1449 में इसे कुमाऊं या कुर्मांचल में मिला लिया। उसी के शासनकाल में पीरू (या पृथ्वी गोसांई) ने पिथौरागढ़ नाम से यहाँ एक किला बनाया। किले के नाम पर ही बाद में इस नगर का नाम पिथौरागढ़ हुआ।
चंदों ने अधिकांश कुमाऊं पर अपना अधिकार विस्तृत कर लिया जहाँ उन्होंने वर्ष 1790 तक शासन किया। उन्होंने कई कबीलों को परास्त किया तथा पड़ोसी राजाओं से युद्ध भी किया ताकि उनकी स्थिति सुदृढ़ हो जाय। वर्ष 1790 में, गोरखियाली कहे जाने वाले गोरखों ने कुमाऊं पर कब्जा जमाकर चंद वंश का शासन समाप्त कर दिया। वर्ष 1815 में गोरखा शासकों के शोषण का अंत हो गया जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने उन्हें परास्त कर कुमाऊं पर अपना आधिपत्य कायम कर लिया। एटकिंसन के अनुसार, वर्ष 1881 में पिथौरागढ़ की कुल जनसंख्या 552 थी। अंग्रेजों के समय में यहाँ एक सैनिक छावनी, एक चर्च तथा एक मिशन स्कूल था। इस क्षेत्र में क्रिश्चियन मिशनरी बहुत सक्रिय थे।
वर्ष 1960 तक अंग्रेजों की प्रधानता सहित पिथौरागढ़ (Pithoragarh) अल्मोड़ा जिले की एक तहसील थी जिसके बाद यह एक जिला बना। वर्ष 1997 में पिथौरागढ़ के कुछ भागों को काटकर एक नया जिला चंपावत बनाया गया तथा इसकी सीमा को पुनर्निर्धारित कर दिया गया। वर्ष 2000 में पिथौरागढ़ नये राज्य उत्तराखण्ड का एक भाग बन गया।
पिथौरागढ़ के पर्यटक स्थल (Tourist places of Pithoragarh)
पिथौरागढ़ और इसके आसपास में कई दर्शनीय स्थल हैं पिथौरागढ़ एक आनंददायक शोर घाटी में स्थित है जो पूर्व में नेपाल और उत्तर में तिब्बत से घिरा हुआ है।
- पर्यटक स्थल – लन्दन फोर्ट, थल केदार, नैनी सैनी हवाईअड्डा, चण्डाक, नारायण आश्रम, झूलाघाट, अस्कोट अभयारण्य, चोकोड़ी, जौलजीवी, धारचूला, मुनस्यारी।
- मंदिर – गंगोलीहाट का महाकाली मंदिर, पाताल भुवनेश्वर, मोस्टामानु मंदिर, कामाक्ष्या मंदिर, उल्कादेवी मंदिर, जयंती मंदिर धवजः, अर्जुनेश्वर मंदिर, बेरीनाग के नाग मांदिर, सेराकोट मंदिर, घुनसेरा देवी मंदिर।
- पिथौरागढ़ की नदियां – गोरी गंगा , काली , सरयू , रामगंगा , धौलीगंगा
- पिथौरागढ़ के पर्वत – बामाधुर्रा , ब्रह्मापर्वत बुर्पधुरा , नन्दकोट , ओमपर्वत , पंचाचूली
- पिथौरागढ़ के दर्रे – लिपुलेख , दारमा , लम्पिया
- पिथौरागढ़ में गुफायें- पाताल भुवनेश्वर
पिथौरागढ़ का संस्कृति और विरासत (Culture and Heritage of Pithoragarh)
ऐपण : ऐपण कुमाऊं का एक लोकप्रिय आर्ट रूप है, और दीवारों, पेपर और कपड़े के टुकड़े विभिन्न ज्यामितीय और अन्य देवताओं, देवी और प्रकृति की वस्तुओं के चित्रण से सजाए जाते हैं जैसे कि पीचौर या डुप्टास भी इस तरीके से सजाए जाते हैं।
हिलजात्रा महोत्सव : कुमाऊँ, पिथौरागढ़ जनपद में कुछ उत्सव समारोह पूर्वक मनाये जाते हैं, हिलजात्रा उनमें से एक है। जनपद पिथौरागढ़ में गौरा-महेश्वर पर्व के आठ दिन बाद प्रतिवर्ष हिलजात्रा का आयोजन होता है। यह उत्सव भादो (भाद्रपद) माह में मनाया जाता है। मुखौटा नृत्य-नाटिका के रूप में मनाये जाने वाले इस महोत्सव का कुख्य पात्र लखिया भूत, महादेव शिव का सबसे प्रिय गण, वीरभद्र माना जाता है। लखिया भूत के आर्शीवाद को मंगल और खुशहाली का प्रतीक माना जाता है।
कैसे पहुंचें
- रोड से – अगर आपका सड़क से पिथौरागढ़ तक पहुंचने के बारे में सवाल है तो गंतव्य तक पहुंचने में काफी आसान है। पिथौरागढ़ अच्छी तरह से चौड़ी सड़कों से जुड़ा हुआ है जो उत्तराखंड के सभी प्रमुख स्थलों से भी जुड़ा हुआ है। टैक्सियां और बस उत्तराखंड राज्य के मुख्य स्थलों से पिथौरागढ़ के लिए उपलब्ध हैं। पिथौरागढ़ से दिल्ली (457 किमी), नैनीताल (218 किमी) और बद्रीनाथ (32 9 किमी) सड़क के माध्यम से जुड़ा हुआ है।
- एयर से – पिथौरागढ़ का निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर में स्थित है जो पंतनगर हवाई अड्डे के रूप में प्रसिद्ध है। हवाई अड्डा उत्तराखंड राज्य के नैनीताल जिले में पिथौरागढ़ से करीब 241 किमी दूर स्थित है। पिथौरागढ़ में किसी भी गंतव्य तक पहुंचने के लिए आप आसानी से टैक्सी और बसों को प्राप्त कर सकते हैं।
- रेल से – पिथौरागढ़ का निकटतम रेलवे स्टेशन टनकपुर में स्थित है। टनकपुर रेलवे स्टेशन से पिथौरागढ़ तक कुल दूरी लगभग 138 किलोमीटर है। रेलवे स्टेशन के बाहर से सटीक गंतव्य तक पहुंचने के लिए यात्री आसानी से बसों और टैक्सी की संख्या प्राप्त कर सकते हैं।