माना जाता है कि उत्तराखंड (uttarakhand) के पौड़ी गढ़वाल जिले में सीतोंस्यू Sitonsu (फलस्वाड़ी गांव Phalswari Gawn) में ही (Mata Sita tomb in Uttarakhand) माता सीता जी ने भू-समाधि ली थी। महाभारत के प्रमाण उत्तराखंड में कई जगह मिलते हैं लेकिन कम ही लोगों को पता होगा कि रामायण की माता सीता का भी उत्तराखंड से गहरा नाता है। उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में 11वीं शताब्दी के सीता मंदिर, लक्ष्मण मंदिर और वाल्मीकि आश्रम मौजूद हैं।
उत्तराखंड में माता सीता की भू-समाधि (Mata Sita tomb in Uttarakhand)
सीतोंस्यू गांव (Sitonsu Gawn) में माता सीता का एक प्राचीन छोटा-सा मंदिर (mata Sita Temple) था, जिसे अब बड़ा आकार दिया जा रहा है, वहीं एक पहाड़ी टीले पर वाल्मीकि आश्रम या उनका मंदिर है और यहीं हर वर्ष कार्तिक (नवंबर) में सीता मेला लगता है, जहां सीता माता के पृथ्वी में समा जाते समय शोक विह्वल नागरिकों द्वारा उनको रोके जाने के प्रयास का चित्रण होता है कि अंततः माता सीता के केश प्रजाजनों के हाथ में रह गए, जो एक स्थानीय दूर्वा घास के रेशों के रूप में ग्रामीण मेले से सहेज कर घर और पूजास्थल में रखते हैं।
सीतोंस्यू गांव (Sitonsu Gawn) इस स्थान के बारे में सबसे पहले स्थानीय विधायक मुकेश कोली ने प्रचारित किया। वह मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से मिले, उनको लेकर आए और रावत ने इस स्थान पर आकर बड़ी योजनाएं स्वीकृत कीं और एक सीता तीर्थ पथ घोषित भी कर दिया। अद्भुत है यह देश। इसे एकता के सूत्र में धर्म के धागे बांधते हैं। जहां भी हम जाएं कृष्ण, राम, सीता, महाभारत की कथाओं के प्रसंग गांव-गांव में मिलेंगे। अरुणाचल में रुक्मिणी के साथ-साथ परशुराम कुंड भी है, तो मणिपुर में भी है। धुर दक्षिण तक यही सूत्र मिलते हैं, जो रामेश्वरम को बदरीनाथ (Badrinath) से और केदारनाथ (Kedarnath) को पशुपतिनाथ से, तो जनकपुर (नेपाल) को अयोध्या से जोड़ते हैं।
उत्तराखंड के पर्यटन नक्शे में सीता माता सर्किट (Sita Mata Circuit in Uttarakhand tourism map)
चार धाम बदरी-केदार-गंगोत्री-यमुनोत्री के दर्शन के लिए हर साल लाखों की संख्या में लोग पौड़ी (Pauri)उत्तराखंड आते हैं। लेकिन कम ही लोगों को मालूम है कि इसे देवभूमि सिर्फ़ इन चार धामों के लिए ही नहीं कहा जाता । यहां बहुत से देवी-देवताओं के प्राचीन मंदिर हैं जिनका उल्लेख पुराणों में है लेकिन ज़्यादा लोगों को उनके बारे में पता नहीं है।
देवप्रयाग स्थित पौराणिक महत्व के रघुनाथ मंदिर, देवाल स्थित लक्ष्मण मंदिर और सितोलस्यूं (Sitonsu Gawn) में फलस्वाड़ी गांव (Phalswari Gawn) में माता सीता मंदिर भी इन्हीं में से एक हैं। अब सरकार ने इन्हीं को ‘सीता माता सर्किट’(Sita Mata Circuit) के तौर पर विकसित करने का ऐलान किया है। यह ऐलान अयोध्या में राम मंदिर बनने का रास्ता साफ होने के बाद किया गया है ।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने पौड़ी में ‘सीता माता सर्किट (Sita Mata Circuit)’ विकसित करने का ऐलान करते हुए कहा कि इन धार्मिक स्थलों की स्थानीय लोगों में बड़ी मान्यता है परंतु अन्य प्रदेशों के लोगों के इनके बारे कम जानकारी है। इसलिए देश भर के श्रद्धालुओं को यहां के धार्मिक महत्व के बारे बताने के लिए प्रचार प्रसार किया जाएगा
पौड़ी गढ़वाल के फलस्वाड़ी गांव सीतोंस्यू (सीतासैंण) में है माता सीता मंदिर (Mata Sita temple is in Phalswari Gawn Sitonsu (Sitasain) of Pauri Garhwal)
सीतोंस्यू (Sitonsu) (फलस्यारी Phalswari Gawn) से एक पहाड़ी पार गांव है- सीतासैंण (Sitasain) (सीता का मैदान) और बिदाकोटि। सीतासैंण (Sitasain) में माता सीता रहीं और लव तथा कुश को पाला। सीतासैंण (Sitasain) के सामने वाल्मीकि ऋषि का मंदिर या आश्रम सरीखा एक छोटा-सा स्थान है।
दोनों ही अलकनंदा के इस इस पार और उस पार हैं। कहते हैं, राम ने लक्ष्मण से अश्रुपूरित नयनों से कहा था कि वह सीता को गंगा पार छोड़ आएं। तो सीतासैंण के सामने अलकनंदा (गंगा) के तट पर बिदाकोटि वह स्थान है, जहां लक्ष्मण ने माता सीता को विदा दी।
सीता संपूर्ण पूर्वी एशिया में पूजित हैं। कंबोडिया, लाओस, वियतनाम और थाईलैंड में सीता नाम रखे जाते हैं। संस्थानों और शासकीय स्थानों के नाम अयोध्या और सीता पर हैं। सीता तीर्थ पथ यदि उत्तराखंड में लोकप्रिय होता है, तो प्रधानमंत्री मोदी की ऐक्ट ईस्ट नीति में सीता से संपूर्ण पूर्वी एशिया हिमालय उत्तराखंड से जुड़ता है, केवल पूर्वोत्तर भारत से नहीं।
पुरातत्वविद् डॉक्टर यशवंत सिंह कठोच के अनुसार, माना जाता है कि फलस्वाड़ी गांव (Phalswari Gawn) में ही सीता माता ने भू-समाधि (Mata Sita’s tomb in Uttarakhand) ली थी। जनश्रुतियों के अनुसार यहां पर सीता माता का मंदिर भी था और बाद में वह भी धरती में समा गया था। इससे जुड़ी कथा के अनुसार, यहां नवंबर महीने मनसार का मेला (Mansar Mela) लगता है। फलस्वाड़ी और कोट गांव, जहां लक्ष्मण मंदिर है, मिलकर इस मेले का आयोजन करते हैं. हर साल बड़ी संख्या में लोग इसमें शामिल होने आते हैं।
सीता माता के वनवास की कहानी (Story of Sita Mata’s exile)
अज्ञेय ने अस्सी के दशक में जन जनक जानकी यात्रा कर सीता के प्रति अपनी साहित्यिक श्रद्धा अर्पित की थी। उसके बाद तो राम जन्मभूमि यात्रा में केवल जय श्री राम का नाद गूंजा। राम जन्मभूमि तो केवल राम की जन्मभूमि है, सीता माता की नहीं।
सीता बहुत कम समय अयोध्या में राजमहिषी के रूप में रहीं। जनकपुर में विवाह के बाद अयोध्या आईं, तो वनवास में गईं। वनवास में रावण ने अपहरण किया, तो बारह वर्ष अशोक वाटिका में राम की अश्रुपूर्ण प्रतीक्षा में बीते। लौटीं, तो अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ा। अयोध्या में कुछ समय ही बीता था, तो धोबी के वचनों ने राम को मर्यादा के पालन हेतु इतना उद्वेलित किया कि पुनः सीता को प्रसवावस्था में वनवास जाना पड़ा। और फिर वाल्मीकि आश्रम में बारह वर्ष अपने दोनों जुड़वा पुत्रों को पाल कर भूसमाधि…!!
Rahu Mandir Paithani Village Pauri
यद्यपि अनेक विद्वान सीता वनवास प्रसंग को प्रक्षिप्त मानते हैं और कहते हैं कि जो राम वनवास में अहिल्या के चरण स्पर्श करते हैं, शिला से उद्धार करते हैं, शबरी के जूठे बेर खाते हैं, सीता के कष्ट पर आंसू बहाते हैं, जिनके मित्र विभीषण रावण-अंत के बाद मंदोदरी से विवाह करते हैं, ऐसे हर स्त्री के प्रति संवेदनशील राम सीता को वनवास नहीं दे सकते।
पर लोकमानस मानता है कि सीता माता ने अपनी मां पृथ्वी की गोद में अंतिम शरण ली थी। यही लोककथाओं, गीतों, चित्रावलियों में मिलता है। इसी क्रम को आगे बढ़ाया है गढ़वाल में ऐसे तीन गांवों ने, जो माता सीता के वनवास तथा पृथ्वी के गर्भ में समा जाने के पवित्र तीर्थ माने जाते हैं तथा आदि काल से यहां इस मान्यता को बल देने वाले मेले, गीत, मंदिर एवं गांवों के नाम प्रचलित हैं। ये तीनों गांव पौड़ी गढ़वाल जिले (pauri Garhwal) में हैं। एक है सीतोंस्यू Sitonsu (फलस्वाड़ी गांव Phalswari Gawn), दूसरा है सीतासैंण (Sitasain) और तीसरा है बिदाकोटि।