हिंदी के प्रसिद्ध कवि मंगलेश डबराल (Manglesh Dabral, A senior Poet of Hindi ) का जन्म 16 मई 1948 को उत्तराखड के टिहरी गढ़वाल जिले के काफलपानी गांव में हुआ, वह समकालीन हिन्दी कवियों में सबसे चर्चित नाम हैं। और उनकी शिक्षा-दीक्षा देहरादून (dehradun) में हुई। देहरादून में पढ़ाई-लिखाई कर जल्दी ही वह श्रमजीवी पत्रकारिता से जुड़ गए थे। उन्होंने उत्तराखंड और पहाड़ को साहित्य के मामले में अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई।
कुछ दिन वह भारत भवन, भोपाल में ‘पूर्वग्रह’ से संबद्ध रहने के बाद इलाहाबाद आए। फिर वह “अमृत प्रभात’ लखनऊ में साहित्य संपादक के रूप में आ गए। इसके कुछ दिनों बाद दिल्ली से “जनसत्ता’ के शुभारंभ के बाद बतौर साहित्य संपादक जनसत्ता में आ गए। यहां उनकी प्रतिभा को नए आयाम मिले।
दिल्ली भी उन दिनों साहित्य का केंद्र बन रही थी देश भर के कवि लेखकों का दिल्ली से खूब लगाव रहता था। “जनसत्ता’ के बाद कुछ दिन वे “सहारा समय’ से जुड़े तथा कुछ दिनों के लिए नेशनल बुक ट्रस्ट (National Book Trust India) में काम किया। अनुवाद के अलावा इधर वे रजा फेलोशिप के तहत शमशेर बहादुर सिंह की जीवनी पर काम कर रहे थे जो कि अंतिम चरण में थी।
मंगलेश डबराल जी का जीवन परिचय (Life introduction of Manglesh Dabral)
जन्म | 16 मई 1948, काफलपानी, टिहरी गढ़वाल जिले, उत्तराखंड |
पिताजी का नाम | मित्रानंद डबराल |
माता जी का नाम | सतेश्वरी देवी |
शिक्षा-दीक्षा | प्रारम्भिक शिक्षा गावं में, उच्च शिक्षा देहरादून |
भाषा | हिंदी |
निधन | 09 दिसम्बर 2020 |
विधाएँ | कविता, डायरी, गद्य, अनुवाद, संपादन, पत्रकारिता, पटकथा लेखन |
कविता संग्रह | पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, हम जो देखते हैं, आवाज़ भी एक जगह है, मुझे दिखा एक मनुष्य, नए युग में शत्रु, कवि ने कहा |
गद्य संग्रह | लेखक की रोटी, कवि का अकेलापन |
पटकथा लेखन | नागार्जुन, निर्मल वर्मा, महाश्वेता देवी, यू.आर. अनंतमूर्ति, कुर्रतुल ऐन हैदर तथा गुरुदयाल सिंह पर केंद्रित वृत्त चित्रों का पटकथा लेखन। |
संपादन | रेतघड़ी (राजस्थान के शिक्षक कवियों की कविताएँ), कविता उत्तरशती (पचास वर्षों की प्रतिनिधि कविताओं का संकलन) |
सम्मान | ओमप्रकाश स्मृति सम्मान, श्रीकांत वर्मा पुरस्कार, शमशेर सम्मान, पहल सम्मान, कुमार विकल स्मृति सम्मान, साहित्य अकादेमी पुरस्कार, हिंदी अकादमी का साहित्यकार सम्मान |
मंगलेश डबराल जी का पहले संग्रह “पहाड़ पर लालटेन” (Manglesh Dabral’s first collection “Pahar Per Laltain”)
मंगलेश डबराल (Manglesh Dabral) जी का पहले संग्रह “पहाड़ पर लालटेन” (Manglesh Dabral’s first collection “Pahar Per Laltain”) कविता की वापसी के दौर में तब आया जब वह लखनऊ में थे। व्यंजना से लैस इस शीर्षक का व्यवहार व्यंजना में बहुत हुआ। इससे जहां एक ओर उनका पहाड़ से संबद्ध होना झलकता था, वहीं वह लालटेन की रोशनी की झिलमिल आभा में न केवल पहाड़ पर सुगबुगाती जीवन चेतना, बल्कि वह अपने व्यक्तित्व का देशज स्वरूप भी निरख पाते थे। इसका आवरण लखनऊ के मशहूर कलाकार रणवीर सिंह विष्ट ने बनाया था, जो उन दिनों कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स लखनऊ के प्राचार्य थे।
1983 के आसपास दिल्ली आने के बाद उनके कई संग्रह आए। “घर का रास्ता “, “हम जो देखते है “, “आवाज भी एक जगह है”, “नए युग में शत्रु” और साल 2020 के शुरुआत में नया संग्रह ” स्मृति एक दूसरा समय है “। दिल्ली आने के बाद उनके अनेक गद्य कृतियाँ भी प्रकाशित हुई। “एक बार आयोवा”, “लेखक की रोटी”, “कवि का अकेलापन”, और हाल में ही एक नया यात्रा वृतत्तांत “एक सड़क एक जगह”।
साहित्य जगत के कवि मंगलेश डबराल (Manglesh Dabral, poet of literature world)
उनकी कविताओं का चयन “कवि ने कहा’ सीरीज में प्रकाशित हुआ तो साक्षात्कारों की पुस्तक “उपकथन’ शीर्षक से। अपने लेखन के लिए वह साहित्य अकादमी पुरस्कार सहित शमशेर सम्मान, ओमप्रकाश स्मृति सम्मान, श्रीकांत वर्मा पुरस्कार, पहल सम्मान व हिंदी अकादमी के साहित्यकार सम्मान से नवाजे गए। अनुवाद में उनकी गहरी दिलचस्पी रही।
सड़कों पर बसों में बैठकघरों में इतनी बड़ी भीड़ में कोई नहीं कहता
आज मुझे निराला की कुछ पंक्तियां याद आयीं. कोई नहीं कहता मैंने
नागार्जुन को पढ़ा है. कोई नहीं कहता किस तरह मरे मुक्तिबोध.एक कहता है मैंने कर ली है ख़ूब तरक़्क़ी. एक ख़ुश है कि उसे बस
में मिल गयी है सीट. एक कहता है यह समाज क्यों नहीं मानता
मेरा हुक्म. एक देख चुका है अपना पूरा भविष्य. एक कहता है देखिए
किस तरह बनाता हूं अपना रास्ता.एक कहता है मैं हूं ग़रीब. मेरे पास नहीं है कोई और शब्द.
न केवल उनकी कविताओं के अनुवाद भारतीय भाषाओं सहित अनेक विदेशी भाषाओं में हुए, बल्कि उन्होंने स्वयं अंग्रेजी, रूसी, जर्मन, डच, स्पेनिश, पुर्तगाली, इतालवी, पोलिश आदि अनेक भाषाओं की कविताओं का अनुवाद किया। अरुंधती राय के दूसरे उपन्यास ‘मिनिस्ट्री ऑफ अटमोस्ट हैप्पीनेस’ का उनका किया अनुवाद भी खासा सराहा गया। वह समय-समय पर साहित्य, सिनेमा, कला व संस्कृति के सवालों पर पत्र- पत्रिकाओं में लिखते थे।
मंगलेश डबराल, हिंदी के वरिष्ठ कवि (Manglesh Dabral, A senior Poet of Hindi)
अनेक बार उन्होंने विदेशों में आयोजित कविता समारोहों में भारत की ओर से काव्यपाठ के लिए शिरकत की। अनेक विदेशी अनुवादकों से उनके गहरे रिश्ते रहे है। कविता में प्रतिरोध की आंच को उनके यहां महीन बिंबों, प्रतीकों और प्रतीतियों में महसूस किया जा सकता है। बहुत ऊंचे स्वर में न बोलने वाली उनकी कविता भीतर से एक नैतिक ताकत व आभा से भरी है।
अपने जीवन काल में उनकी लिखी अनेक कविताएं ‘खुशी कैसा दुर्भाग्य’, “ताकत की दुनिया’, ‘संगतकार’, “केशव अनुरागी’, “नए युग में शत्रु’, “मुझे मिला एक मनुष्य’ हिंदी कविता में मंगलेशियत की पहचान को पुख्ता करती हैं। हिंदी कविता में बाजार और भूमंडलीकरण पर मंगलेश के संग्रह “नए युग में शत्रु’ बेहतर संग्रहों में गिना जाता है। इसकी कविताएं केवल नए युग के शत्रुओं की ही पहचान नहीं करतीं, बल्कि आधुनिक सभ्यता की पैकेजिंग के इस युग में सूखी हुई पपड़ी। जैसे विगलित सत्व और सत्य की खबर भी लेती हैं।
मंगलेश डबराल (Manglesh Dabral) को कविताएं भूमंडलीकरण की फलश्रुति, ताकत की दुनिया, आधुनिक सभ्यता के विकारों और तकनीक की शक्ल में छाते जा रहे नए युग के नए शत्रुओं के नवाचारों को कविता का मुद॒दा बनाती हैं। ‘एक बार आयोवा’ और “एक सड़क एक जगह’ उनके यात्रा संस्मरणों की पुस्तकें जरूर हैं, पर उनके कवित्व का रसायन इसके वृत्तांतों से टपकता है।
लेखक की रोटी’ व “कवि का अकेलापन’ में उनका रसज्ञ आलोचक-गद्यकार, संस्कृति व समाज के सवालों पर बहस करने वाला लेखक प्रतिबिंबित होता है तथा कविता को उसकी बुनियादी जड़ों से समझने वाला कवि चिंतक भी। वही लेखक और कवि अपने वर्तमान के साथ आने वाले समय का कवि भी होता है जिसमें उसका समय बोलता है। इस दृष्टि से पार्थिवता से छिटककर भी वह हिंदी की दुनिया में एक कालजयी कवि के रूप में याद किए. जाएंगे, इसमें संदेह नहीं।