काठगोदाम (Kathgodam) उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं मंडल के नैनीताल जिले में हल्द्वानी शहर का एक उपनगर है। काठगोदाम (Kathgodam) इसे ऐतिहासिक तौर पर कुमाऊँ का द्वार (Gateway of Kumaun) कहा जाता रहा है। यह नगर पहाड़ के निचले हिसे में बसा है, जंगलों से घिरे उत्तराखंड में लकड़ी के व्यापार के लिए बने काठ के गोदामों के कारण उसका नाम काठगोदाम पड़ गया था। लेकिन अब बड़ी बड़ी इमारतों तले काठ के गोदाम कही गुम हो चुके हैं।
काठगोदाम का इतिहास (History of Kathgodam)
टिंबर किंग के नाम से मशहूर रहे दान सिंह बिष्ट उर्फ दान सिंह ‘मालदार’ ने कभी चौहान पाटा में लकड़ी के कई गोदाम बनाए थे। दान सिंह ‘मालदार’ मूल रूप से पिथौरागढ़ के वड्डा के रहने वाले थे। उनका लकड़ी का बड़ा कारोबार था।
दान सिंह बिष्ट उर्फ़ दान सिंह ‘मालदार’ (Dan Singh Maldar) उत्तराखण्ड के कुमाऊँ मंडल के अरबपति कारोबारी थे. ब्रिटिश भारत में उन्हें ‘भारत के टिम्बर किंग’ (Timber King of India) के नाम से भी जाना जाता था. उन्हें पूरे भारत में एक प्रतिष्टित कारोबारी का दर्जा हासिल था. आज भी उन्हें कुमाऊँ मंडल के लोग दान सिंह ‘मालदार’ के रूप में याद करते हैं। वे उस ज़माने में उत्तराखंड के पहले ‘मालदार’ जिनका डंका पूरी दुनियाभर में चलता था।
“काठ” यानी लकड़ी के गोदाम से काठगोदाम (“Kath” means the wooden warehouse from Kathgodam)
दान सिंह बिष्ट उर्फ़ दान सिंह ‘मालदार चौहान पाटा में लकड़ियां एकत्र कर वह देश के अनेक हिस्सों में सप्लाई करते थे। यहां तक कुछ लकड़ियां गौला नदी (उत्तराखंड के हल्द्वानी में बहने वाली नदी इसको “किच्छा” नाम से भी जाना जाता है।) में बहाकर और कुछ अन्य साधनों से लाई जाती थीं। फिर मालगाड़ी में भरकर बाहर जाती थीं।
कुमाऊ का प्रवेश द्वार काठगोदाम (Gateway of Kumaun Kathgodam)
उत्तराखंड के हल्द्वानी शहर से कुछ किलोमीटर दूर इस छोटी गावं जहां “काठ’ यानी लकड़ी के गोदाम होने के कारण ही चौहान पाटा का नाम काठगोदाम (Kathgodam) पड़ गया। लेकिन अब यहां न काठ है और न ही उसके गोदाम बचे हैं। हर जगह बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी हो गई हैं। उत्तराखंड के जिला नैनीताल स्थित काठगोदाम “कुमाऊ का प्रवेश द्वार (Gateway of Kumaun)” है और पूर्वोत्तर रैलीवे का अंतिम स्टेशन भी। जैसे गढ़वाल का द्वार कोटद्वार जो की पौड़ी गढ़वाल जिले में है।
काठगोदाम (Kathgodam) यहां से पहाड़ियां शुरू हो जाती हैं, इसलिए यह तीर्थ स्थलों और पर्यटन स्थलों को जाने बाले श्रद्धालुओं व सैलानियों के लिए सड़क मार्ग का प्रस्थान बिंदु भी है। नैनीताल के निचले हिस्से में गौला (गार्गी /किच्छा) नदी के तट पर बसा काठगोदाम 1901 तक 375 की आबादी वाला छोटा-सा गांव हुआ करता था और इसके आसपास बड़े बड़े घने जंगल थे।
1884 में अंग्रेज ने हल्द्वानी में और फिर कुछ समय बाद काठगोदाम (Kathgodam) तक के लिए रेल लाइन बिछाईं। तब से इस जगह का व्यावसायिक महत्व काफी बढ़ गया है और अब यह अपने साफ़ स्वच्छ पर्यटन के लिए जाना जाता है।
कुमाऊं काठगोदाम में लकड़ी में नक्काशी (Wood carving in Kumaon Kathgodam)
उत्तराखंड में ज॑गल बहुतायत में होने के कारण कुमाऊं मे काठ शिल्प (नक्काशी) यथा उत्कीर्णन की परंपरा बहुत प्राचीन है,जो यहां के लोगों को विरासत में प्राप्त हुई है। लकड़ी, हाथीदाँत, पत्थर आदि को गढ़ छीलकर अलंकृत करने या मूर्ति बनाने को उत्कीर्णन या नक्काशी करना कहते हैं।
प्रारंभ में इसका उपयोग मंदिरो के द्वार और छत्र आदि बनाने में होता था। फिर धीरे-धीरे इसका इस्तेमाल घरों में भी होने लगा। कुमाऊं के लोगों की अर्थवयवस्था इससे काफी सुदृढ बनी। पहाड़ों के पुराने घरों में आज भी उत्तराखंड के कुमाऊं से लेकर गढ़वाल तक यह शानदार नक्काशी देखने को मिलती है। एक दौर में दैनिक जीवन में काम आने वाले लकड़ी के नक्काशीदार बर्तनों का उपयोग हर घर में होता था। घरों में छाज (झरोखा) का प्रचलन था, जिनमें लकड़ी पर बेलबूटेदार नक्काशी की जाती थी।
कुछ खास इलाकों में झालरदार खिड़की और दरवाजों का प्रचलन था। लेकिन अब यह नक्काशी परंपरा विलुप्ति की और है। अलबत्ता, कुछ उद्योग ऐसे हैं जो कही-कहां गांव-देहातो में जैसे-तैसे खुद को बचाए हुए हैं। यहां नक्काशी के लिए तुणी, कापड़ी, सानन, कत्यूश दत जैसी लकड़ियों का उपयोग अलग-अलग वस्तुएं बनाने में किया जाता है।
ठेकी एक से डेढ़ फुट ऊंचा बर्तन है और इसी आकार में दो फुट ऊंचे वर्तन को नपी (नापने का वर्तन) कहा जाता हैं। यह मुख्यतः दही जमाने और मट्ठा बनाने के लिए प्रयुक्त किया जाता है। इसके अलावा लकड़ी से सिंग और माणा बनाए जाते हैं। काष्ठ शिल्प से ही ओखल-मूसल, नाली, रिंगाल से चटाई, टोकरी, डाल (बड़ी टोकरी), चुंगर-घुले, डोके आदि भी बनाए जाते हैं।
अनान के भंडारण के लिए भकार (बड़ा लकड़ी का बक्सा) का निर्माण किया जाता है। कुमाऊं के जंगलों में बांस बहुतायत में पाया जाता है। यहां के लोगों को बांस सैकड़ों सालों से पाल रहा है। बांस का प्रयोग कर स्थानीय दस्तकार सूपे, डाले, कंडिया, पिटारे संदूक आदि बनाते हैं। उत्तराखंड में अधिकतर ग्रामीण जगत का काम बांस के बने सूप के बगैर नहीं चलता। आज भी पहाड़ के दूरस्थ इलाकों में लकड़ी के नक्काशी के नमूने घरों में देखे जा सकते हैं। लेकिन लगभग 200 साल पुराने घरों को देखकर अब हम सिर्फ को कुमाऊं की गौरवशाली काष्ठकला का अनुमान ही लगा सकते है।
काठगोदाम में प्रमुख पर्यटन स्थल (Major tourist places in Kathgodam)
शीतला देवी मन्दिर : शीतला देवी मंदिर उत्तराखंड राज्य, नैनीताल जिले के हल्द्वानी में स्थित है। यह हल्द्वानी से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भव्य एवं विशाल मंदिर है| हल्द्वानी से करीब 8 किलोमीटर दूर काठगोदाम (Kathgodam)– नैनीताल रोड पर ही शीतला माता का मंदिर है। कहा जाता है कि सन 1892 में हल्द्वानी, अल्मोड़ा मोटर मार्ग के निर्माण से पूर्व तक दक्षिण पूर्वी क्षेत्रों एवं मैदानी क्षेत्रों से बद्रीनाथ, केदारनाथ, जागेश्वर, बागेश्वर की यात्रा करने वाले यात्री इसी मार्ग से होकर जाया करते थे। यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है।
कालीचौद मंदिर काठगोदाम : शीतला देवी मंदिर और कालीचौद मंदिर काठगोदाम के दो प्रतिष्ठित धार्मिक स्थान है। कालीचौड़ मन्दिर काठगोदाम से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं यहाँ मंदिर काली मां को समर्पित है। कालीचौड़ मन्दिर शान्ति का अहसास देता है। कालीचौड़ का मन्दिर प्राचीन काल से ऋषि-मुनियों की अराधना और तपस्या का केन्द्र रहा है। माना जाता है कि सतयुग में सप्त ऋषियों ने इसी स्थान पर भगवती की आराधना कर अलौकिक सिद्धियां प्राप्त की थी ।
गौला नदी (किच्छा नदी) : गौला नदी इस क्षेत्र का ख़ास आकर्षण है। ‘सात ताल झील’ से निकलने वाली यह नदी हल्द्वानी और शाही जैसी कई जगहों से होकर गुजरती है। इस नदी के ऊपर एक बाँध भी बना हुआ है, जिसे गौला बांध के नाम से जाना जाता है। काठगोदाम से 21 कि.मी. दूर स्थित छोटे-सा शहर ‘भीमताल’ का भी भ्रमण कर सकते हैं। यह जगह साल भर पानी से भरी रहने वाली भीमताल झील के लिए प्रसिद्ध है।
काठगोदाम कैसे पहुंचे (How to reach Kathgodam)
बाय एयर : काठगोदाम के लिए निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर हवाई अड्डा है जो काठगोदाम (Kathgodam) से लगभग 34 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पंतनगर हवाई अड्डा से दिल्ली के साथ प्रति सप्ताह उड़ानों से जुड़ा हुआ है।
ट्रैन मार्ग से : काठगोदाम (Kathgodam) का अपना रेलवे स्टेशन है जो मुख्य शहर से सिर्फ एक किलोमीटर दूर है। काठगोदाम रेलवे स्टेशन उत्तर भारत का प्रमुख अंतिम रेलवे स्टेशन जहां से विभिन्न शहरों के लिए ट्रेन चलती है काठगोदाम रेलवे स्टेशन अंतिम रेलवे स्टेशन होने के साथ ही नैनीताल और हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों का प्रमुख मार्ग है इसलिए इसे कुमाऊं मंडल का प्रवेश द्वार (Gateway of Kumaun) भी कहा जाता है। काठगोदाम रेलवे स्टेशन से उत्तराखंड के विभिन्न प्रमुख स्थानों के लिए टैक्सी उपलब्ध रहते हैं।
सड़क मार्ग : काठगोदाम (Kathgodam) राष्ट्रीय राजमार्ग-87 पर स्थित है, गाजियाबाद, दिल्ली, नैनीताल और हल्द्वानी से काठगोदाम के लिए सीधी बस सेवा उपलप्ध रहते है। काठगोदाम हल्द्वानी से लगभग 8 किलोमीटर के दूरी पर स्थित है।