उत्तराखंड (uttarakhand) के नैनीताल जिले के लिंगाधार गावं, खुर्पाताल (Khurpatal) में भारत का पहला ‘मॉस गार्डन‘ (India’s first moss garden in Nainital) तैयार किया गया है। देश के पहले मॉस गार्डन (India’s first moss garden) का उद्घाटन को प्रसिद्ध जल संरक्षण कार्यकर्ता राजेंद्र सिंह (वाटर मैन ऑफ इंडिया) ने किया। ये उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र के लिये बहुत बड़ी उपलब्धि है।
नैनीताल में भारत का पहला मॉस गार्डन (India’s first moss garden in Nainital)
भारत के पहले ‘मॉस गार्डन (India’s first moss garden) को तैयार करने के लिए उत्तराखंड वन विभाग की अनुसंधान सलाहकार समिति द्वारा सीएएमपीए योजना (CAMPA scheme) के तहत पिछले साल जुलाई 2019 में मंजूरी दी गई थी। जिसका उद्देश्य विभिन्न प्रजातियों के काई और अन्य ब्रायोफाइट्स का संरक्षण करना और लोगों को हमारे पर्यावरण में मॉस की पारिस्थितिक और अन्य उपयोगी भूमिकाओं से अवगत कराना है।
भारत का पहला ‘मॉस गार्डन‘(India’s first moss garden) लगभग 10 हेक्टेयर के क्षेत्र में फैला हुआ है यह कुमाऊँ मंडल (उत्तराखंड uttarakhand) के नैनीताल जिले में स्थित है। उत्तराखंड वन विभाग (Uttarakhand Forest Departmant) की अनुसंधान सलाहकार समिति द्वारा CAMPA (Compensatory Afforestation Fund Management and Planning Authority (क्षतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण) योजना के तहत जुलाई 2019 में स्वीकृत किया गया था, मॉस गार्डन (moss garden) का उद्घाटन रेमन मैग्सेसे अवार्डी और जल संरक्षण कार्यकर्ता राजेंद्र सिंह ने किया था। मॉस गार्डन, खुर्पाताल में मॉस (काई) की लगभग 30 से अधिक विभिन्न प्रकार की प्रजातियां और कुछ अन्य ब्रायोफाइट प्रजातियां भी हैं।
मॉस (काई) क्या होता है ? (What is moss?)
मॉस (काई-Moss) एक छोटा सा एक या दो सेमी ऊँचा पौधा हैं जो दीवारों और पेड़ों पर हरे रंग की दिखाई देती है। इसमें जड़ों के बजाय मूलामास (Rhizoid) होते हैं जो जल तथा लवण लेने में मदद करते हैं। तना पतला, मुलायम और हरा होता है, इन पर छोटी छोटी मुलायम पत्तियाँ धनी तरह से लगी होती हैं जिसके कारण मॉस (काई) पौधों का समूह एक हरे मखमल की चटाई जैसा लगता है।
मॉस मिट्टी का निर्माण करते हैं और चट्टानों को छोटे छोटे कणों में भी तोड़ देती हैं। इनकी पत्तियाँ वायु के धूलकणों को रोककर धीरे धीरे मिट्टी को गहरी बना देती हैं। मॉस वर्षा के जल को भी रोक रखता है। इससे मिट्टी गीली रहती है जहाँ अन्य पौधे आकर रुक जाते और पनपते हैं। मिट्टी में जल को रोककर मॉस बाढ़ से भी बचाते हैं।
इसका औषधि में बहुतायत में इस्तेमाल होता है। जो मॉस (काई) पारिस्थितिकी तंत्र के उतार-चढ़ाव का सबसे महत्वपूर्ण संकेतक माना जाता है क्योंकि वे आवास और जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील हैं।
सीएएमपीए योजना (CAMPA scheme) यह एक कोष है जिसकी स्थापना 2006 में क्षतिपूरक वनीकरण के प्रबंधन के लिए की गई थी। इस योजना का मुख्य उद्द्श्या वन क्षेत्रों में होने वाली कमी के बदले प्राप्त राशि का संधारण और उसका वनीकरण में फिर से निवेश करना है।
भारत के पहले मॉस गार्डन के बारे में (About India’s first moss garden)
- CAMPA योजना के तहत खुरपाताल के पास निर्मित मॉस गार्डन को जुलाई 2019 में स्वीकृत एक परियोजना के तहत विकसित किया गया था, जिसका उद्देश्य विभिन्न प्रजातियों के काई और अन्य ब्रायोफाइट्स का संरक्षण करना।
- देश का पहला मॉस गार्डन (India’s first moss garden) 10 हेक्टेयर में फैला हुआ है, जिसमें एक व्याख्या केंद्र, 30 प्रतिनिधि मॉस प्रजातियां और अन्य ब्रायोफाइट प्रजातियां हैं,
- इसमें IUCN रेड लिस्ट में सूचीबद्ध दो प्रजातियां (Hyophila involuta और Brachythecium bhanhanani) शामिल हैं और यहां 1.2 किलोमीटर के क्षेत्र में ‘मॉस’ की विभिन्न प्रजातियां हैं और इनके सबंध में वैज्ञानिक जानकारी प्रदर्शित की गई है।
- भारत में पाई जाने वाली 2,300 मॉस प्रजातियों में से 339 विशेषज्ञों के अनुसार उत्तराखंड में पाई जाती हैं। मोस (काई) गैर-संवहनी पौधे हैं जो ब्रायोफाइटा डिवीजन से संबंधित हैं।
- वे मृदा गठन, जल प्रतिधारण, कटाव की जाँच और पोषक तत्व सिंक के रूप में कार्य करने सहित पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता को बनाए रखने और विकसित करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे छोटे फूलों वाले पौधे हैं जो आमतौर पर नम और छायादार स्थानों में उगते हैं।