नया साल 2021 के आने और 2020 साल की आखिरी एकादशी (Ekadashi) 25 दिसंबर को मोक्ष देने वाली मोक्षदा एकादशी (Mokshada Ekadashi) का व्रत (Fasting of Ekadashi) है, जिसमें भगवान विष्णु की पूजा का विधि विधान सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। सनातन धर्म में एकादशी (Ekadashi) व्रत बहुत ही पवित्र, शांतिदायक और पापनाशक माना गया है।
एकादशी (Ekadashi) तिथि जगतगुरु भगवान विष्णु जी का स्वरूप है, जो समस्त पापों का अपारण करने वाले है। हर साल में आने वाले सभी एकादशी में नारायण समतुल्य पुण्यफल देने का सामर्थ्य है। ये सभी अपने भक्तों की कामनाओं की पूर्ति कर उन्हें विष्युलोक यानि वैकुंठ ‘पहुंचाती हैं।
एकादशी का व्रत जो मोक्ष देता है (Fast of Ekadashi which gives salvation)
मार्गशीर्ष महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी मोक्षदा (मोक्षदायिनी) एकादशी हिन्दु कैलेण्डर (Hindu calendar) 25 दिसंबर को मनाई जाएगी। ये साल 2020 की आखिरी एकादशी भी है। मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से पूजा करने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत को मोक्ष प्राप्ति के लिए रखा जाता है। इसका पुण्य व्रत करने वाले के साथ उसके पितरों को भी मिलता है।
एकादशी व्रत का महत्व (Importance of Ekadashi fast)
पदमुपुराण के अनुसार, परमेश्वर भगवान श्री कृष्ण ने पांडव पुत्र युधिष्ठिर को एकादशी (Ekadashi) तिधि का महत्व समझाते हुए को एकादशी तिथि का महत्व समझाते हुए कहा है कि बड़ी-बड़ी दक्षिणा वाले यज्ञ से भी मुझे उतना संतोष नहों मिलता, जितना एकादशी ब्रत के अनुष्ठान से मुझे प्रसन्नता मिलती है। जैसे नागों में शेषनाग, पक्षियों में गरुड़, देवताओं में श्री हरिहर विष्णु और मनुष्यों में ब्राह्मण श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार संपूर्ण व्रतों में एकादशी का व्रत श्रेष्ठ और कल्याणकारी है।
इस व्रत का पालन करने से शुभ फलों में वृद्धि होकर अशुभता का नाश होता है। शास्त्रों में मार्गशीर्ष (अगहन) माह को बड़ा ही पावन महीना माना गया है। इस महीने में शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी का व्रत करने से नीच योनि में गए पितरों को मुक्ति मिलती है। भक्ति-भाव से किए गए इस व्रत के प्रभाव से प्राणी सांसारिक बंधन से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त होता है।
एकादशी व्रत और उसके पुण्य फल (Ekadashi fast and its virtuous result)
द्वापर युग में योगेश्वर श्री कृष्ण ने इस दिन अर्जुन को मनुष्य का जीवन सार्थक बनाने वाली गीता का उपदेश दिया था। गीता जैसे महान ग्रंथ का प्रादु्भाव होने के कारण इस दिन को गीता जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। गीता का ज्ञान हमें दुख, क्रोध, लोभ और अज्ञानता के दलदल से बाहर निकालने के लिए प्रेरित करता है।
सत्य, दवा, प्रेम और सत्कर्म को अपने जीवन में धारण करने वाला प्राणी ही मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। इस दिन श्रीमद्भागवत गीता की सुगंधित फूलों से पूजा कर, गीता का पाठ करना चाहिए।
गीता पाठ करने से मनुष्य के सभी कष्ट दूर होते हैं और उसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्त होती है। मोक्ष प्रदान करने वाली यह एकादश (Ekadashi) मनुष्यों के लिए चिंतामण के समन समस कामना को पूर्ण कर बड़े-बड़े पातकों का नाश करने वाली है।
साल के आखरी एकादशी (Ekadashi) को वैकुण्ठ एकादशी, मुक्कोटी एकादशी, मोक्षदा एकादशी (Mokshada Ekadashi) भी कहते हैं इस समय – वैकुण्ठ एकादशी हिन्दु कैलेण्डर में धनु सौर माह के दौरान पड़ती है।
धनुर्मास के दौरान दो एकादशी आती हैं, जिसमें से एक शुक्ल पक्ष के दौरान और दूसरी कृष्ण पक्ष के दौरान आती है। जो एकादशी शुक्ल पक्ष के दौरान आती है उसे वैकुण्ठ एकादशी कहते हैं। क्योंकि वैकुण्ठ एकादशी का व्रत सौर मास पर निर्धारित होता है, इसीलिए यह कभी मार्गशीर्ष चन्द्र माह में और कभी पौष चन्द्र माह में हो जाती है। अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार, एक साल में कभी एक, कभी दो बार वैकुण्ठ एकादशी होती है।
तुलसी और गंगाजल से एकादशी व्रत का पूजन (Ekadashi fasting with Tulsi and Ganga water)
वैसी तो एकादशी (Ekadashi) का दिन स्वयं विष्णुप्रिया है इसलिए इस दिन जप-तप, पूजा-पाठ करने से प्राणी जगत नियंता भगवान विष्णु जी का सन्निद्य प्राप्त कर लेता है। इस दिन ऋषिकेश (rishikesh) में लोग गंगा, यमुना आदि पवित्र नदियों मे स्नान और भगवान के विष्णु जी के पूजन का विशेष महत्व है। इस एकादशी पर श्री हरि को प्रिय प्रिय तुलसी की मंजरी तथा पीला चंदन, रोली, अक्षत और पिले फूल, ऋतु फल और धूप दीप, मिश्री आदि से भगवान का भक्ति-भाव से पूजन करना चाहिए।
रात्रि के समय भगवान नारायण की प्रसन्नता के लिए नृत्य, भजन-कीर्तन और स्तृति के द्वार जागरण करना चाहिए। जागरण करने वाले को जिस फल की प्रात होती है, वह हजारों वर्ष तपस्या करने से भी नहीं मिलता।
भगवान श्रीकृष्ण ने पांडव पुत्र युधिष्ठिर को मोक्षदा एकादशी का महत्व समझाते हुए कहा है कि इस एकादशी के महत्वा को पढ़ने और सुनने मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। इस व्रत को करने से प्राणी के जन्म जन्मांतर के पाप क्षीण हो जाते हैं और जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है।