वैसे तो उत्तराखंड (Uttarakhand) वादियों का राज्य है। बात करे उत्तराखंड के चमोली (Chamoli) जिले कि जो पहाड़ों में बसा एक खूबसूरत शहर (Beautiful City In The Mountains) यहाँ वादियां नए नए दृश्यों से कभी गर्मियां हो या सर्दियां हमारा मन मोह लेती है। कुछ लोग उत्तराखंड तीर्थ यात्रा के लिए आते हैं तो कुछ लोग घूमने। यहाँ बर्फ के पहाड़ हैं, सुंदर वादियाँ हैं, मन मोह लेने वाले बड़े बड़े बुग्याल हैं और झरने तो अनगिनत जो आपको पहाड़ो पर सैर करते समय मिलते जाते हैं। उत्तराखंड में वैसे तो हर जगह ही देखने लायक है लेकिन चमोली वो जगह है जहाँ पहुँचते ही सुंदरता आपका स्वागत कर रही होती है।
उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में स्थित चमोली (Chamoli) जिला जिसे देवताओं का निवास, अपने मंदिरों के लिए प्रतिष्ठित स्थान, जहां ‘चिप्को आंदोलन’ का जन्मस्थान हुआ हो, इसकी रणनीतिक महत्व के साथ साथ चमोली जिला भारत के पहाड़ी जिले में से एक है। चमोली (Chamoli) ने सिद्ध किया कि कैसे “अपनी प्राकृतिक संपत्तियों में सबसे शानदार, यहाँ कि द्रिशायावाली घाटी के पहलुओं, पानी के किनारों, फूलों की विभिन्न किस्में से बसे फूलो की घाटी” और जहां से भारत से प्रमुख नदियाँ के संगम की शुरुवात हो, को आज दुनिया भर में अलग पहचान दिया हैं। बर्फ से ढके पर्वतों के बीच स्थित यह जगह काफी खूबसूरत है। चमोली अलकनंदा नदी के समीप बद्रीनाथ मार्ग पर स्थित है। यह प्रमुख धार्मिल स्थानों में से एक है। काफी संख्या में पर्यटक यहां आते हैं। चमोली की प्राकृतिक सुंदरता पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। पूरे चमोली जिले में कई ऐसे मंदिर है जो हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। चमोली में ऐसे कई बड़े और छोटे मंदिर है तथा ऐसे कई स्थान है जो रहने की सुविधा प्रदान करते हैं। इस जगह को “चाती” कहा जाता है। चाती एक प्रकार की झोपड़ी होती है जो अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। चमोली मध्य हिमालय के बीच में स्थित है। अलकनंदा नदी यहाँ की प्रसिद्ध नदी है जो तिब्बत की जासकर श्रेणी से निकलती है।
चमोली का इतिहास (History of Chamoli)
“चमोली (Chamoli) उत्तराखंड राज्य का सबसे बड़ा जिला है, इसे चांदपुरी गढ़ और अलकापुरी गढ़ के नाम से भी जाना जाता हैं।” चमोली जिले को , “गढ़वाल” का जिला और उत्तराखंड के किलों की भूमि/गढ़ कहा जाता है। आज के गढ़वाल को अतीत में केदार-खण्ड के नाम से जाना जाता था। पुराणों में केदार-खण्ड को भगवान का निवास कहा जाता था। यह तथ्य से लगता है कि वेद, पुराण, रामायण और महाभारत ये हिंदू शास्त्र केदार-खण्ड में लिखे गए हैं। यह माना जाता है कि भगवान गणेश ने व्यास गुफा में वेदों की पहली लिपि लिखी, जो की बद्रीनाथ से केवल 4 किलोमीटर दूर अंतिम गांव “माना गावं” में स्थित है।
पौराणकि किवदंतियो के अनुसार ऋग्वेद में जलप्लावन (जलप्रलय) के बाद सप्त-ऋषियों ने भारत के अंतिम गावं एक ही गांव “माना गावं” में अपनी जान बचाई। इसके अलावा वैदिक साहित्य की जड़ें गढ़वाल से उत्पन्न होती हैं क्योंकि गढ़वाली भाषा में संस्कृत के बहुत सारे शब्द हैं। वैदिक ऋषियों की कर्मस्थली गढ़वाल के प्रमुख तीर्थ स्थान है, जो विशेष रूप से चमोली में स्थित हैं, जैसे अनसूया में अत्रमुनी आश्रम, चमोली शहर से लगभग 25 किमी दूर है, बद्रीनाथ के पास गांधीमदन पर्वत में कश्यप ऋषि का कर्मस्थली, देवप्रयाग में अलकनंदा- भागीरथी नदी का संगम आदि-पुराण के अनुसार, बद्रीनाथ के पास व्यास गुफा में वेदव्यास द्वारा महाभारत की कहानी लिखी गई थी। पांडुकेश्वर एक छोटा गांव है जो ऋषिकेश बद्रीनाथ राजमार्ग में स्थित है जहां से बद्रीनाथ 25 किमी दूर है, इसे राजा पांडु की तपस्थली कहा जाता है। केदार-खण्ड पुराण में इसे “भगवान शिव की भूमि/तपस्थली माना जाता है।
कुछ इतिहासकार मानते हैं कि यह भूमि आर्य वंश की उत्पत्ति है। ऐसा माना जाता है कि लगभग 300 बी.सी. खास जाति ने कश्मीर नेपाल और कुमन के माध्यम से गढ़वाल पर आक्रमण किया। इस आक्रमण के कारण यह एक संघर्ष में बढ़ गया, तत्पश्चात बाहरी लोगों और गढ़वाल के मूल लोगों के बीच एक संघर्ष हुआ। अपने संरक्षण के लिए यहाँ के मूल लोगों ने मूलभूत रूप से “गढ़ी” नामक छोटे-छोटे किले बनाए गए बाद में, ख़ास ने पूरी तरह से यहाँ के मूल लोगों को हराया और किलों/गढ़ी पर कब्जा कर लिया। उत्तराखंड के गढ़वाल जिलों के बारे में माना जाता है कि यहाँ पुरे 52 गढ़ हुआ करते थे राजा भानू प्रताप गढ़वाल में पँवार राजवंश के पहले शासक थे जिन्होंने चानपुर-गढ़ी को अपनी राजधानी के रूप में स्थापित किया था। गढ़वाल के 52 गढ़ों के लिए यह सबसे मजबूत गढ़ था। 8 सितंबर 1803 के विनाशकारी भूकंप ने गढ़वाल राज्य की आर्थिक और प्रशासनिक स्थापना को कमजोर कर दिया। स्थिति का फायदा उठाते हुए अमर सिंह थापा और हल्दीलाल चंटुरिया के आदेश के तहत गोरखाओं ने गढ़वाल पर हमला किया। उन्होंने वहां स्थापित गढ़वाल के आधे से अधिक हिस्से को 1804 से 1815 तक गोरखा शासन के अधीन रखा । पँवार राजवंश के राजा सुदर्शन शाह ने ईस्ट इंडिया कंपनी से संपर्क किया और मदद मांगी । अंग्रेजों की सहायता से उन्होंने गोरखाओं को हटा दिया और अलकनंदा और मंदाकानी के पूर्वी भाग को ब्रिटिश गढ़वाल में राजधानी श्रीनगर के साथ विलय कर दिया उस समय से यह क्षेत्र ब्रिटिश गढ़वाल के रूप में जाना जाता था और गढ़वाल की राजधानी श्रीनगर की बजाय टिहरी में स्थापित की गई थी। शुरुआत में ब्रिटिश शासक ने देहरादून और सहारनपुर के नीचे इस क्षेत्र को रखा था। लेकिन बाद में अंग्रेजों ने इस क्षेत्र में एक नया जिला स्थापित किया और इसका नाम पौड़ी रखा। आज की चमोली एक तहसील थी। 24 फरवरी, 1 9 60 को तहसील चमोली (Chamoli) को एक नया जिला बनाया गया।
चमोली के प्रमुख पर्यटक स्थल (Tourist Places of Chamoli)
चमोली (Chamoli) मध्य हिमालय में स्थित पर्वतों से घिरा एक खूबसूरत शहर के साथ साथ उत्तराखंड का एक जिला है। चमोली में एक तरफ धार्मिक स्थल हैं तो दूसरी तरफ खूबसूरत हिल्स स्टेशन, झील-झरने और नदियाँ भी हैं। मखमली घास के बुग्याल हो या मैदान यहाँ की खूबसूरती में चार चाँद लगा देती हैं। उत्तराखंड कि गढ़वाल मंडल का चमोली जिला प्राकृतिक सुंदरता से भरा हुआ है। चमोली की मुख्य नदी अलकनंदा है। करीब 8030 वर्ग किमी में फैला चमोली अपने आगोश में खूबसूरती का हर आयाम रखता है। यही वजह है कि चमोली (Chamoli) को उत्तराखंड की शान कहा जाता है। बात करे यहाँ के ऐसी ही बेहद खूबसूरत जगहों, ताल, पर्वत, बुग्याल और यहाँ कि अपने संस्कृति और विरासत जिससे यहाँ जाना जाता है।
औली (Auli) : उत्तराखंड कि गढवाल क्षेत्र में औली (Auli) को “औली बुग्याल अर्थात् “घास के मैदान” के नाम से जाना जाता है. यह समुद्रतल से 2500 – 3050 मी० तक की ऊंचाई पर स्थित है यहाँ जोशीमठ से सड़क या रोपवे के माध्यम से पहुंचा जा सकता है. यहाँ से नंदादेवी तथा दूनागिरी जैसे विशाल पर्वत चोटियों का मनोरम दृश्य दिखाई देता है. आमतौर पर जनवरी से मार्च तक औली की ढलानों पर लगभग 3 मी० गहरी बर्फ की चादर बिछी होती है. भारत के शीतकालीन खेल महासंघ द्वारा यहाँ अब राष्ट्रीय चैंपियनशिप का आयोजन किया जाता है. हालाँकि औली में स्कीइंग मुख्य आकर्षण का केन्द्र है परन्तु इसके अलावा भी केबल कार सवारी तथा रोप लिफ्ट, या अन्य आउटडोर खेल जेसे स्नोमैन बनाना या स्नोबॉल लड़ाई भी आकर्षण के केन्द्र हैं.
बद्रीनाथ धाम (Badrinath Dham) : भगवान विष्णु जी को समर्पित बद्रीनाथ मंदिर देश के प्रमुख धार्मिक स्थान है, जिसकी स्थापना शंकराचार्य ने की थी। बद्रीनाथ विष्णु जी के पांच मंदिर जिन्हे पंच बद्री कहा जाता है, तथा उत्तराखंड कि चार धाम के लिए जाना जाता हैं। माना जाता है कि गंगा अवतरण के बाद 12 धाराओं में धरती पर आई थी, जिसमें से एक अलकनंदा है। एक मान्यता ये भी है कि भगवान विष्ण ने यहाँ कई वर्षों तक कठोर तप किया था, लेकिन तप के दौरान भारी बर्फबारी होने लगी। भगवान विष्णु को हिमपात से बचाने के लिए माता लक्ष्मी ने बेर के पेड़ का रूप ले लिया। तपस्या के बाद जब भगवान विष्णु को पता चला कि देवी लक्ष्मी ने उनकी रक्षा की हो तो उन्होंने कहा कि आज से मेरे साथ देवी लक्ष्मी भी बदरी के नाम से पूजी जाएंगी। बद्रीनाथ धाम में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है।
पंच बद्री (Panch Badri) : भगवान विष्णु जी को समर्पित पाँच मंदिरो के समूह जिनको पंच बद्री के नाम से जाना जाता है यह भगवान विष्णु की पूजा पाँच अलग-अलग स्थानों पर और पाँच अलग-अलग नामों से की जाती है। विशाल बद्री (बद्रीनाथ), योगध्यान बद्री, भविष्य बद्री, वृद्ध बद्री और आदि बद्री इन मंदिरों को भगवान विष्णु का निवास माना जाता है।
गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब (Gurudwara Shri Hemkund Sahib) : हेमकुण्ड साहिब सिखों का एक धार्मिक स्थल है। समुद्र तल से करीब 4632 मीटर की उँँचाई पर स्थित ये जगह सात पर्वत श्रृंखलाओं से घिरी है। यहाँ विशिष्ट आकार-प्रकार का गुरुद्वारा है। यहीं पास में ही एक झील है जिसमें यहाँ पहुँचने वाले लोग स्नान करते हैं। कहा जाता है कि इस जगह पर सिखों के 10वें गुरू गोविंद सिंह ने तपस्या की थी। यहाँ साल भर बर्फबारी होती है। अक्टूबर से अप्रैल में रास्ता बर्फबारी के कारण बंद रहता है और मई में रास्ते को साफ किया जाता है। इस दर्शनीय तीर्थ में चारों ओर से बर्फ़ की ऊँची चोटियों का प्रतिबिम्ब विशालकाय झील में अत्यन्त मनोरम एवं रोमांच से परिपूर्ण लगता है। इसी झील में हाथी पर्वत और सप्त ऋषि पर्वत श्रृंखलाओं से पानी आता है।
फूलों की घाटी (Valley of Flowers) : फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान है, जिसे अंग्रेजी में “Valley of Flowers” कहते हैं। फूलों की घाटी प्रकृति प्रेमियों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है। हिमालय श्रृंखला की यह घाटी फूलों की विभिन्न प्रजातियों से मौसम के अनुकूल गुलजार रहती हैं। यहाँ के बारे में भी एक पौराणिक कथा है। कहा जाता है लक्ष्मण की रक्षा के लिए हनुमान यहाँ संजीवनी लेने आए थे। इस घाटी में फूलों की 521 प्रजातियाँ हैं। 1982 में फूलों की घाटी को राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था और यूनेस्कों ने भी इस घाटी को विश्व धरोहर घोषित किया हुआ है यह नन्दा देवी अभयारण्य नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान का एक भाग है। हिमालय क्षेत्र पिंडर घाटी अथवा पिंडर वैली के नाम से भी जाना जाता है।
जोशीमठ (Joshimath) : जोशीमठ धार्मिक मान्यता से ज्यादा अपनी खूबसूरती के लिए फेमस है। आसपास हरे-भरे मैदान, बर्फ ओढ़े पहाड़ लोगों के आकर्षण का केन्द्र है। जोशीमठ मे नरसिंह भगवान का मंदिर भी है, जिसे देखा जा सकता है। जोशीमठ के रास्ते से ही चोपता-तुंगनाथ जाया जाता है। जोशीमठ में आध्यात्मिकता की जड़ें गहरी हैं तथा यहां की संस्कृति भगवान विष्णु की पौराणिकता के इर्द-गिर्द बनी है। प्राचीन नरसिंह मंदिर में लोगों का सालभर लगातार आना रहता है। यहां बहुत सारे पूजित स्थल हैं। शहर के आस-पास घूमने योग्य स्थानों में औली, उत्तराखण्ड का मुख्य स्की रिसॉर्ट शामिल है।
वसुधारा वाॅटर फॉल्स (Vasudhara Falls) : भारत के अंतिम गावं “माना गाँव” से 5 किमी दूरी पर पश्चिम में स्थित वसुधारा हिमाच्छादित चोटियों, ग्लेसियरों और ऊँची चट्टानों से घिरा 145 मी० ऊँचा झरना है. प्रचंड हवा कभी-कभी सम्पूर्ण जल-प्रपात की मात्रा को बिखेर देती है और ऐसा प्रतीत होता है जेसे झरना एक या दो मिनट के लिए रुक गया हो जिससे स्थानीय लोगों के मन में कई अन्धविश्वासी विचार उत्पन्न होते हैं. खूबसूरत वसुंधरा वाॅटर फाल्स चमोली (Chamoli) में है। यह वाॅटर फाल्स अलकनंदा नदी पर स्थित है। वसुंधरा वाॅटर फॉल्स की बद्रीनाथ से दूरी करीब 9 कि.मी. है और इसकी ऊँचाई करीब 400 फुट है। वसुंधरा वाॅटर फाल्स चमोली मे सबसे अद्भुत जगहों में से एक है। मान्यता है कि राजपाट से विरक्त होकर पांडव द्रोपदी के साथ इसी रास्ते से होते हुए स्वर्ग गए थे। कहते हैं कि वसुधारा में ही सहदेव ने अपने प्राण और अर्जुन ने अपना धनुष गांडीव त्यागा था। वसुधारा के लिए फुट ट्रेक माना गाँव से शुरू होता है।
पंच प्रयाग (Panch Paryag) : हिमालय से निकलने वाली पांच नदियों का संगम स्थान में से तीन संगम स्थान चमोली (Chamoli) में होता है। इसलिए इस जगह को पंच प्रयाग कहा जाता है। वे पंच प्रयाग हैं, विष्णु प्रयाग, नंद प्रयाग, कर्ण प्रयाग, रुद्र प्रयाग और देव प्रयाग।
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- विष्णु प्रयाग : धौली गंगा तथा अलकनंदा नदियों का संगम स्थान
- नंद प्रयाग : नन्दाकिनी तथा अलकनंदा नदियों का संगम स्थान
- देव प्रयाग : अलकनंदा और भागीरथी नदियों का संगम स्थान (टिहरी गढ़वाल जिले)
- कर्ण प्रयाग :अलकनंदा तथा पिण्डर नदियों का संगम स्थान
- रुद्र प्रयाग : अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों का संगम स्थान (रुद्रप्रयाग जिले में)
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चमोली कैसे पहुुँचे (How to Reach Chamoli)
- सड़क से : अगर आप इन जगहों को देखना चाहते हैं तो बस से देहरादून आइए और फिर यहाँ से गाड़ी बुक कीजिए या रोड़वेज बस से जाया जाता है, फ्लाइट से आने के लिए जाॅली ग्रांट एयरपोर्ट देहरादून है। जोकि यहाँ से चमोली की दूरी करीब 221 कि.मी. है। चमोली जाने के लिए सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश रेलवे स्टेशन है। ऋषिकेश से चमोली की दूरी 202 कि.मी. है। चमोली जाने के जिए सड़क मार्ग से जाना पड़ता है । उत्तराखंड के प्रमुख स्थलों जैसे कि ऋषिकेश, पौड़ी, उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, श्रीनगर, गोपेश्वर आदि से बसों और टैक्सी आसानी से उपलब्ध हैं। चमोली NH 58 में स्थित है जिससे यह आसानी से पंहुचा जा सकता है।
- एयर से : जॉली ग्रांट हवाई अड्डा चमोली से 221 किमी की दूरी पर स्थित है। जॉली ग्रांट एयरपोर्ट दैनिक उड़ानों के साथ दिल्ली से जुड़ा हुआ है। चमोली जॉली ग्रांट हवाई अड्डे के साथ सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। जौली ग्रांट हवाई अड्डे टेक्सी बसे चमोली तक उपलब्ध रहते है।
- रेल से : यह दिल्ली से 439 किलोमीटर दूर और देहरादून शहर से 250 किलोमीटर दूर स्थित है। गोपीश्वर, कर्णप्रायग और रुद्रप्रयाग चमोली के सबसे निकटतम शहर हैं। चमोली का निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। ऋषिकेश रेलवे स्टेशन चमोली से 202 किमी स्थित है। ऋषिकेश भारत के प्रमुख स्थलों के साथ रेलवे नेटवर्क से जुड़ा हुआ है। ऋषिकेश के लिए रेलगाड़ी अक्सर हरिद्वार से चलते है। चामोली ऋषिकेश के साथ सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। टैक्सी और बस ऋषिकेश, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग और कई अन्य स्थलों से चमोली तक उपलब्ध हैं।