जाह्नवी नौला, (Jahnavi Naula) गंगोलीहाट (Gangolihat) पिथौरागढ़ (Pithoragarh) इसे प्रकृति की देन कही जाये या कुछ और, 13वी शताब्दी में कत्यूरी शासकों द्वारा बनाये गए पिथौरागढ़ में गंगोलीहाट (Gangolihat) के जाह्नवी नौला (Jahnavi Naula) की अविरल धारा आज भी पुरातन समय की तरह ही बह रही है। सदाबहार जाह्नवी नौला (Jahnavi Naula) का पानी आज भी लोगो की पहले पसंद है। इस नौले के जल को गंगा नदी के जल के सामान माना जाता है।
नौला हमारी प्राचीन धरोहर के साथ-साथ हमारे पूर्वजों की पर्यावरण के प्रति जागरुकता को भी दर्शाते हैं। प्रत्येक नौले के पास किसी-न-किसी प्रजाति का वृक्ष, भगवान की मूर्ति अवश्य होता है। भारत के गरम घाटियों जैसी गुजरात, पंजाब, राजस्थान राज्य के आस-पास के नौलों में पीपल, बड़ आदि का पेड़ तो वही उत्तराखंड (Uttarakhand) के ऊँचाई वाले क्षेत्रों में बांज, देवदार, केले, आम आदि के पेड़ नजर आते हैं। यह पेड़ वहां रहने वाले लोगो के आस्था से भी जुड़ा हुआ रहता है।
उत्तराखंड का परंपरागत जल स्त्रोत नौला (Naula The traditional water source of Uttarakhand)
उत्तराखंड (Uttarakhand) में आज भी बहुत से पहाड़ी गावं में जल का स्त्रोत ही नौला है। नौला पेयजल की उपलब्धता हेतु पत्थरों से निर्मित एक ऐसी संरचना है, जिसमें सबसे नीचे एक वर्ग फुट चौकोर सीढ़ीनुमा क्रमबद्ध पत्थरों की पंक्ति जिसे स्थानीय भाषा में ‘पाटा’ कहा जाता है, से प्रारम्भ होकर ऊपर की ओर आकार में बढ़ते हुए लगभग 8-10 पाटे होते हैं, सबसे ऊपर का पाटा लगभग एक डेढ़ मीटर चौड़ाई-लम्बाई व कहीं-कहीं पर ये बड़े भी होते हैं, नौला के बाह्य भाग में प्रायः तीन ओर दीवाल होती है। कहीं-कहीं पर दो ओर ही दीवालें होती हैं। ऊपर गुम्बदनुमा छत होती है।
अधिकांश नौलों की छतें चौड़े किस्म के पत्थरों जिन्हें ‘पटाल’ कहा जाता है, से ढँकी रहती है। पटाल का उपयोग उत्तराखंड (Uttarakhand) के गावं में छत बनाने के लिए भी किया जाता है। उत्तराखंड (Uttarakhand) में नौला के भीतर की दीवालों पर किसी-न-किसी देवता की मूर्ति विराजमान रहती है, जो वह के लोगो की आस्था और विश्वास से जुड़ा हुआ रहता है आज भी बहुत से गावं में इनके पूजा भी की जाते है। अधिकांश नौलों में प्रायः बड़े-बड़े पत्थरों को बिछाकर आँगन बना हुआ दिखता है। बाहरी गन्दगी को रोकने एवं पर्दे के रूप में नौलों में पत्थरों की चाहरदीवारी भी अधिकांशतया बनी हुई पाई जाती है।
उत्तराखण्ड (Uttarakhand) में नौले के आस पास में छोटे-छोटे रूप में भगवान की मूर्तियां, फोटो आदि पाये जाते या फिर रखे जाते हैं इसका एक मुख्य कारण इनका साफ़ जगह होना भी है। इनके आस-पास न केवल पूजा पाठ होते थे बल्कि विवाह के रीति रिवाज से लेकर मृत्यु के कर्मकांड तक के कई सारे पुराने रिवाज इन्हीं नौलों पर आज भी सम्पन्न किये जाते है। उत्तराखंड (Uttarakhand) का सबसे पुराना नौला जाह्नवी नौला (Jahnavi Naula) को ही माना जाता है। यह पिथौरागढ़ (Pithoragarh) के गंगोलीहाट (Gangolihat) में स्थित है।
जल संरक्षण की मिसाल गंगोलीहाट का जाह्नवी नौला (Example of water conservation Jahnavi Naula of Gangolihat)
रामगंगा और सरयू नदी के मध्य भू भाग में स्थित गंगावली क्षेत्र के गंगोलीहाट (Gangolihat) में है, हाट कालिका सिद्धपीठ। इस मंदिर से पांच सौ मीटर दूर एक ऐसा नौला है जिसे सदियों से गुप्त गंगा (Gupt Ganga) सींच रही है। अब तक समय का लंबा पड़ाव तय कर चूका यह नौला आज भी जल संरक्षण की नजीर है। नाम है जाह्नवी नौला। पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट (Gangolihat) में स्थित यहां प्राचीन और ऐतिहासिक जाह्नवी नौला (Jahnavi Naula) जल संरक्षण की मिसाल भी है।
गुप्त गंगा से आता है जाह्नवी नौला का पानी (Jahnavi Naula’s water comes from the Gupt Ganga)
जाह्नवी नौला (Jahnavi Naula), दो मंदिर समूहों के मध्य स्थित इस नौले का स्रोत गंगोलीहाट (Gangolihat) के दक्षिण- पश्चिम में स्थित शैलेश्वर पर्वत की गुफा से निकलने वाली गुप्त गंगा को माना गया है। इसके निर्माण को लेकर आज भी इतिहासकारों के अलग-अलग मत हैं। नौले में लगे शिलापट के अनुसार इसका निर्माण 1275 में हुआ था। तब चहां चंद वंशीय मणकोटी राजाओं का शासन हुआ करता था। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि नौले और यहां पर निर्मित मंदिरों का निर्माण मणकोटी राजा रामचंद्र देव ने किया तो कुछ का मत इससे भिन्न है। उनका मानना है कि नौले का निर्माण मणकोटी राजा रामचंद्र देव की माता ने किया।
मान्यता यह भी है कि नौले के निर्माण से पूर्व यहां पर शैलेश्वर पर्वत की गुप्त गंगा (Gupt Ganga) से आने वाले जल का कुंड हुआ करता था जिसे बाद में नौले का रूप दिया गया। जाह्नवी नौले (Jahnavi Naula) के एक तरफ जंगम बाबा अखाड़े का मंदिर समूह है। जिसमें सबसे बड़ा मंदिर 15 फीट ऊंचा है और इसमें चुतर्भुज स्थिति में भगवान विष्णु जी की मूर्ति स्थापित है।
इस मंदिर का मुंह पूरब दिशा की तरफ है। दूसरी तरफ पांच मंदिरो का समूह हैं जो सभी दक्षिणोन्मुखी हैं। पांच में से चार मंदिरो में आयुध सहित चतुर्भुजी भगवान विष्णु जी विराजमान हैं तो वही पांचवें में हनुमान।
कुमाऊं की धरोहर गंगोलीहाट का जाह्नवी नौला (Heritage of Kumaon Jahnavi Naula of Gangolihat)
जाह्नवी नौले (Jahnavi Naula) का पानी आज भी पवित्र है। स्थानीय मान्यता है कि पूर्व में हाट कालिका मां इसी नौले में स्नान करने आती थीं। पूर्व में हाट कालिका मंदिर में लगने वाले भोग के लिए जाह्नवी नौले (Jahnavi Naula) का पानी प्रयोग किया जाता है।
यहां आने वाले भक्तजन नौले से पानी लेकर मंदिर में जाते थे। वर्तमान में यहां पर नौले को बंद कर यहां से मंदिर तक पाइप लाइन बिछा दी गई है और वर्तमान में भी मंदिर में इसी जाह्नवी नौले (Jahnavi Naula) का पानी प्रयोग में लाया जाता है।
ऐतिहासिक नौले में किसी तरह की छेड़छाड़ न हो, नौले को किसी प्रकार का नुकसान न पहुंचे, इस दृष्टिकोण से नौले को लोहे की जाली से बंद कर दिया गया।
जाह्नवी नौला (Jahnavi Naula) केवल जलस्रोत ही नहीं अपितु पूरी उत्तराखंड कुमाऊं में आस्था का केंद्र भी है। जिसे सीघे हाट कालिका से जोड़ा जाता है। जाह्नवी नौले (Jahnavi Naula) में अविरल बहती जल धारा के पीछे संरक्षण की सोच है।
गुप्तगंगा (Gupt Ganga) क्षेत्र में घने जंगल प्राचीन काल में भी थे, आज भी हैं। यहां के स्थानीय लोग जंगलों की काफी हिफाजत करते हैं। नौले का उपयोग करने वाले महाकाली मंदिर के पुजारी रावल समुदाय के लोग भी नौले के संरक्षण के लिए लगातार प्रयत्नशील रहते हैं।