अगर आप भी उत्तराखंड जाने का प्लान बना रहे हैं और सोच रहे हैं, कि कहाँ जाएँ और क्या खाएँ, तो जानिए आपको (10 Famous Traditional food Uttarakhand) उत्तराखंड के 10 पारंपरिक भोजन में क्या खाना चाहिए। भारत के उत्तर का हिमालयी राज्य उत्तराखंड की प्राकृतिक खूबसूरती का हर कोई दीवाना है, चाहे गर्मियां का मौसम हो या सर्दियों की बर्फ़बारी का मौसम, हर साल यहां देश विदेश लाखों सैलानी घूमने के लिए जाते हैं।
कोई यहाँ धार्मिक यात्रा करने आता है तो कोई यहाँ शहरों के भीड़ भाड़ को छोड़ कर यहाँ के पहाड़ों को ट्रेक करने के लिए आते है। देवताओं के भूमि अर्थात देवभूमि काहे जाने वाले इस हिमालयी राज्य में आये सैलानी और तीर्थयात्री यहाँ के ऊँचे पहाड़ों, बुग्याली मैदानों, यहाँ के शिव मंदिरो से लेकर यहाँ वास करने वाले देवताओं के मंदिरो को दिल में बसा लेना चाहता है।
उत्ताराखंड में प्रसिद्ध व्यंजन (Famous food in uttarakhand)
हिमालयी राज्य उत्तराखंड के पहाड़ियों में स्थित कुमाऊं और गढ़वाल मंडल दो अलग-अलग घटक क्षेत्र हैं। दोनों की अपनी विशिष्ट परंपराएं, त्योहार और संस्कृति हैं, और उनका भोजन स्वाद और पोषण पर भरा हुआ है।
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बदलते मौसम के अनुसार उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल मंडल के लोगों की भोजन की उत्ताराखंड में प्रसिद्ध व्यंजन (Famous food in uttarakhand) आदतें भी बदल जाती हैं, और जब सिर्फ बात हिमालयी राज्य देवभूमि उत्तराखंड की आती है तो वहा के व्यंजनों को भी खूब पसंद किया जाता है फिर चाहे बात झंगुरे की खीर की हो या मंडुवे की रोटी और तिल की चटनी की या हो बात भांग की चटनी की.. उत्तराखंड का पारंपरिक भोजन की खानपान गुणवत्ता और स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहद लाभकारी और पौष्टिक माना गया है।
उत्तराखंड के प्रसिद्ध व्यंजनों के नाम (Uttarakhand famous food name)
भारत ही नहीं विदेशों में भी पहाड़ के मंडुवा, झंगोरा, काले भट, गहथ, तिल आदि अपनी मार्केट बना रहे हैं। बात करे यहाँ के अल्मोड़ा जिले के “बाल मिठाई” व “सिंगोड़ी” से लेकर यहाँ के शादियां में बनने वाला एक प्राचीन और स्वादिष्ट मिठाई “अरसा” (चावल के पिसे आटे से बनाने वाला) और “स्वाला” (मीठे आटे की रोटी) हर कोई इसका दीवाना है, अब तो यह प्राचीन मिठाई अरसा शहरों के दुकानों में भी आसानी से उपलप्ध होने लगे है।
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आयुर्वेदिक चिकित्सक बताते हैं कि पहाड़ी अनाज सेहत के लिए बेहद फायदेमंद होते हैं। जहां मंडुवा मधुमेह की बीमारी में बेहद कारगर है, तो वहीं यह शरीर में शुगर की मात्रा को भी नियंत्रित कर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।
बात करे सबसे पौष्टिक झंगोरा की तो यह हमारे पेट संबधी बीमारियों को दूर करता है। काले भट में प्रोटीन की प्रचुर मात्रा होती है। गहथ की दाल की तासीर गर्म होने के कारण यह गुर्दे की पथरी में बेहद फायदेमंद है।
वैसे भारत में जहां पंजाब में सरसों का साग और मक्की की रोटी फेमस है, तो वहीं बिहार की लिट्टी चोखा तो कहीं दाल ढोकली, हर भारतीय राज्य के खाने की बात ही निराली है। उत्तराखंड में लुभावने नजारों के अलावा यहाँ सबसे अधिक आकर्षित करता है वह है वहां का पौष्टिक, स्वादिष्ट, गुणवत्ता खाना।
कहीं ऐसा ना हो कि आप उत्तराखंड के खूबसूरती को देखकर उत्तराखंड के प्रसिद्ध व्यंजन (Uttarakhand famous food name) ही खाना भूल जाएँ। ऐसा कहा जाता है, कि जो व्यक्ति एक बार उत्तराखंड के पारंपरिक पौष्टिक व्यंजनों (Famous food in uttarakhand) का स्वाद चख लेता है, वो कभी उस स्वाद को भूल नहीं पाता है। वैसी तो समस्त उत्तराखंड में चलते चलते कोई न कोई ढाबा या छोटा बड़ा होटल मिल जाएगा। और कुछ मिले न मिले पर एक चाय की प्याली की चुस्की जरूर मिल जाते है। पर बात करे उत्तराखंड के 10 प्रसिद्ध पारंपरिक भोजन (10 Famous Traditional food Uttarakhand) जो आपको उत्तराखंड के हर पहाड़ी गांव में आसानी से उपलब्ध रहते हैं और कोई न कोई आपको ये 10 प्रसिद्ध पारंपरिक भोजन खाते तो दिख ही जाएगा।
उत्तराखंड के 10 प्रसिद्ध पारंपरिक भोजन (10 Famous Traditional food Uttarakhand)
1. उरद के पकोड़े (Urad Ke Pakore)
मानसून का मौसम हो और साथ में पकोड़े हो तो उत्तराखंड के उरद के पकोड़े जिसे आसान से भाषा में वडा (Wada) भी कहा जाता है, यह गढ़वाल और कुमाऊं उत्तराखंड का एक स्थानीय व्यंजन है। उरद दाल के बने पकोड़े को पारिवारिक और सामाजिक कार्यों के दौरान भी परोसा जाता है, अक्सर यह उत्तराखंड के बार-त्योहारों या फिर शादियों में बनाया जाता है।
2. लिंगुड़े की सब्जी (lingde Ki subji)
लिंगुड़े की सब्जी को उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में भी बनाया जाता है, लगभग सभी पहाड़ी लोगो की पसंदीदा सब्जियों में से एक है. जिसके सामने अच्छी से अच्छी सब्जी भी स्वाद में कम है। और साथ ही साथ यह कई औषधीय गुणों से भरपूर हैं। लिंगड़ (lingde) की सब्जी के कई लाभ हैं और ये मात्र सब्जी ही नहीं बल्कि एक आयूर्वेदिक दवाई बनाने में भी प्रयोग किया जाता है। यह जून और जुलाई मानसून के दौरान पानी की धाराओं के पास आसानी से उपलब्ध रहते है।
3. मड़ुआ/कोदा की रोटी (Madua Ki Roti)
उत्तराखंड में खाने के बहुत ही प्रकार के व्यंजन प्रसिद्ध हैं परन्तु पहाड़ी क्षेत्रों में ‘मंडुवे की रोटी (कोदू की रव्टि)’ और ‘बिच्छू घास का साग ‘(कंडली कू साग) बहुत ही प्रसिद्ध हैं गढ़वाल और कुमाऊँ क्षेत्रों में लोग इन व्यंजनों को पसंद करते हैं। मड़ुआ/कोदा की रोटी उत्तराखंड का एक स्थानीय अनाज से बनी स्वादिष्ट और पौष्टिक चपाती। मंडवे की रोटी गढ़वाल में सबसे अधिक खाया जाने वाला प्रमुखता भोजन में से एक है। उत्तराखंड में गढ़वाल के लोग अक्सर चूहले में मंडवे की मोटी-मोटी रोटी बनाते है और तिल या भांग की चटनी के साथ बड़े चाव से खाते है और साथ में अगर देसी घी हो तो फिर बात ही कुछ और है। उत्तराखंड में यह पुराने समय से प्रचुर मात्रा में उगने वाला कोदा/मड़ुआ पोषक तत्वों से भरपूर है इसकी रोटी ठंड के दिनों में हर पहाड़ी घरो मे खाई जाती है।
3. झंगुरे की खीर (jhangora Ki kheer)
झंगुरे की खीर चावल की खीर जैसी ही होती है अंतर ये होता है कि झंगुर महीन और बारीक दाने के रुप में होता है और आसानी से खाया जा सकता है। पहाड़ो में झंगुरे को चावल के जैसा पकाकर दाल-सब्जी के साथ भी खाया जाता है।
4. कंडाली का साग (kandali ka saag)
बिच्छू घास जिसे गढ़वाली में ‘कंडाली’ और कुमाऊँनी में ‘सिंसूण’ भी बोलते हैं , यदि अगर किसी के शरीर में यह लग गया तो खतरनाक झनझनाहट,दर्द और सूजन होने लगती है, (इस पर कांटे होते हैं) क्योंकि इसमें फाँर्मिक एसिड पाया जाता है। कंडाली का साग पहाड़ों में बहुत ही लोकप्रिय है, आम साग-सब्जियों की भांति इसकी सब्जी और साग अति प्रसिद्ध है। इसमें प्रचुर मात्रा में आयरन तत्व की मात्रा के साथ-साथ मैग्निज, विटामिन ए व कैल्शियम भी पाया जाता है, रक्तचाप जैसी बिमारियों के लिए यह औषधि का काम भी करता है।
5. गहत दाल के पराठे (Gahat (Kulath) Ki Dal)
ऐसा नहीं है कि पराठे सिर्फ पंजाब में ही पसंद किए जाते हैं। उत्तराखंड में गहत दाल के पराठे भी खूब पसंद किए जाते हैं। गहत दाल को गेंहू या फिर रागी (मड़ुआ/कोदा) के आटे में भरकर पकाया जाता है। गहत या कुलैथ को हमारे शरीर में किडनी पर सकारात्मक प्रभाव के लिए भी जाना जाता है। लोग गहत की दाल को भूनकर भी खाना पसंद करते हैं. आमतौर पर इसके लिए मंडवे के आटे का इस्तेमाल होता है।
6. फाणु (पिसा हुआ दाल) (faanu)
फाणू गहत दाल से बना होता है। फाणू बनाने के लिए गहत की दाल को पहले लगभग 4 से 6 घंटे तक पानी में भिगोया जाता है। इसमें गहत की दाल को पीसकर गाढ़ा पकाया जाता है. इसके पानी का खास ख्याल रखा जाता है, यह जितनी गाढ़ी बने उतना बेहतर। जब पीसी हुई गहत अच्छे से गाढ़ी हो जाए तब उसमें बारीक टमाटर, प्याज, अदरक, लहसन आदि डालकर इसे अच्छी तरह पकाया जाता है।
7 बाड़ी (badi)
बाड़ी को कोदा की आटा (जिसे चून या मंडुआ के आटे के रूप में भी जाना जाता है) से बनाया जाता है। बाड़ी को गहत की दाल या फाणु के साथ खाया जाता है। इसे बनाने के लिए मंडवे के आटे को गरम पानी के साथ मिलकार हलवे की तरह गाढ़ा पकाया जाता है। गढ़वाल में अधिकतार पकवान और व्यंजन बनाने के लिए लोहे की कढ़ाई का इस्तेमाल होता है वैसे ही बाड़ी को भी लोहे की कढ़ाई बनाया जाता है। गर्म गर्म फाणु को गर्म गर्म बाड़ी के साथ खाना यह उत्तराखंड में बहुत लोकप्रिय भोजन है।
8. भांग/भंगजीरा की चटनी
आप अगर उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में हैं और चाहे किसी भी तरह का भोजन कर रहे हैं, भांग/भंगजीरा की चटनी इसे और स्वादिष्ट बनाती है. इसका खट्टा-नमकीन-तीखा फ्लेवर सभी तरह के परांठे और मंडवे की रोटी के साथ जबरदस्त स्वाद देता है। उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्र में भांग, भंगजीरा, तिल, लय्या (सरसों के दाने) से लेकर हरी पत्तिया जैसे लहसुन, मवाररा की पत्तियों से भी चटनी बनाई जाती है।
9. चैसोणी(Chainsoo)
चैनसो/चैसोणी गढ़वाल की एक पौष्टिक आहार दाल है और इसे काले चने की दाल,उड़द, काले भट्ट का उपयोग करके तैयार किया जाता है। इसमें उड़द और भट्ट की दाल को पीसकर गाढ़ा पकाया जाता है, इसके स्वाद में इजाफे के लिए बारीक टमाटर, प्याज, अदरक का पेस्ट बनाकर खूब पकाया जाता है। यह दिन के खाने के तौर पर खूब पसंद किया जाता है। आमतौर पर इस दाल में प्रोटीन की मात्रा अधिक होने के कारण इसे पचाना मुश्किल होता है। हालांकि यह कहा जाता है कि इसे भूनने से इसका बुरा प्रभाव समाप्त हो जाता है।
10. ठच्वनी/आलू टमाटर का झोल (Thechwani/Alu Tamatar Ka Jhol)
ठच्वनी बनाने के लिए मूली की जड़ या या आलू का उपयोग करके इसे पत्थर के सिलबट्ट में कुट/थीचा कर तैयार की जा सकती है। तो वहीं आलू टमाटर का झोल बनाने के लिए आलू टमाटर को पहले उबला जाता है और फिर पकाया जाता है।
Waah Kya baat hai , Muh me pani aa gaya
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