उत्तराखंड (uttarakhand) का माँ सुरकंडा देवी मंदिर हिंदुओं का (Ancient Siddhpeetha Maa Surkanda Devi Temple) एक प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है और इस मंदिर के सम्बन्ध भगवान शिव की पत्नी माता सती (पार्वती) से जुड़े हुई है, जो नौ देवी रूपों में से एक है। माँ सुरकंडा देवी मंदिर (Maa Surkanda Devi Temple) भारत के 51 शक्ति पीठों में से एक है। यहाँ देवी काली की प्रतिमा सुरकंडा देवी मंदिर में स्थापित है।
प्राचीन सिद्धपीठ माँ सुरकंडा देवी मंदिर (Ancient Siddhpeetha Maa Surkanda Devi Temple)
यह प्राचीन सिद्धपीठ मंदिर खूबसूरत पर्यटक स्थान टिहरी जिले (Tehri) के कद्दूखाल (kaddukhal) के सकलना रेंज (Saklana Range) में स्थित है। माँ सुरकंडा देवी मंदिर, धनोल्टी से लगभग 6.5 किलोमीटर और चंबा से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सुरकंडा देवी मंदिर तक पहुंचने के लिए लोगों को गांव कद्दूखाल से पैदल 3 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। यह मंदिर समुद्र से लगभग 2,757 मीटर ऊंचा है।
प्राचीन सिद्धपीठ माँ सुरकंडा देवी मंदिर (Siddhpeetha Maa Surkanda Devi Temple) घने जंगल से घिरा हुआ है और इस जगह से उत्तर में हिमालय का सुंदर दृश्य देखा जा सकता है और साफ़ मौसम के दौरान यहाँ से दक्षिण में देहरादून (Dehradun) और ऋषिकेश (Rishikesh) के सुंदर दृश्य देखे जा सकते हैं। ऊँचे हिमालये छोटी पर होने के कारण यह मंदिर वर्ष के अधिकांश समय कोहरे से ढका रहता है। वर्तमान मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया है। वास्तविक मंदिर की स्थापना के समय का पता नहीं है। ऐसा माना जाता है कि यह बहुत प्राचीन मंदिर है।
सिद्धपीठ माँ सुरकंडा देवी मंदिर के बारे में पौराणिक कथन (Mythological about Siddhpeeth Maa Surkanda Devi Temple)
मसूरी (mussoorie) मोटर मार्ग पर कद्दूखाल (kaddukhal) से डेढ़ किलोमीटर ऊपर करीब तीन हजार फुट की ऊंचाई में सुरकुट पर्वत पर है मां सुरकंडा का मंदिर | कद्दूखाल से मंदिर तक पैदल दूरी तय करनी पड़ती है । सिद्धपीठ माँ सुरकंडा देवी मंदिर के पौराणिक उल्लेख के अनुसार जब राजा दक्ष ने हरिद्वार के कनखल में यज्ञ का आयोजन किया तो उसमें सभी देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन उन्होंने भगवान शिव जी को आमंत्रित नहीं किया गया और न ही अपनी पुत्री सती को। सती ने रोहिणी को चंद्रमा के साथ विमान से जाते देखा और सखी के द्वारा यह पता चलने पर कि वे लोग उन्हीं के पिता दक्ष के विराट यज्ञ में भाग लेने जा रहे हैं, सती का मन भी वहाँ जाने को व्याकुल हो गया।
भगवान शिव के समझाने के बावजूद सती की व्याकुलता बनी रही और भगवान शिव ने अपने गणों के साथ उन्हें वहाँ जाने की आज्ञा दे दी। भगवान शिव जी के मना करने पर भी शिव जी की पत्नी व राजा दक्ष की पुत्री यज्ञ में चली गई। वहां उसका अपमान हुआ और वह यज्ञ कुंड में कूद गई। इस समाचार से अत्यंत कुपित भगवान शिव ने अपनी जटा से वीरभद्र को उत्पन्न किया और वीरभद्र ने गण सहित जाकर दक्ष यज्ञ का विध्वंस कर डाला। यज्ञ का विध्वंस होने के बाद सती अपने आप को छाया रूपी सती में आदेश देकर अंतर्धान हो जाती है।
छायासती के भस्म हो जाने पर यह घटनाक्रम खत्म नहीं होती, छायासती दवारा भगवान शिव के प्रसन्न होकर यज्ञ पूर्णता का संकेत दे देने के बाद छायासती की लाश सुरक्षित रूप में दक्ष की यज्ञशाला में ही पुनः मिल जाती है। और फिर देवी शक्ति द्वारा पूर्व में ही भविष्यवाणी रूप में बता दिए जाने के बावजूद लौकिक पुरुष की तरह भगवान शिवजी जी सती के लिए विलाप करते हैं तथा सती की लाश सिर पर धारण कर विक्षिप्त की तरह भटकते हैं। वह हिमालय में अपने साथ सती को ले कर चले जाते थे।
यह सब देख और देवताओं को त्राण दिलाने तथा परिस्थिति को सँभालने के लिए भगवान विष्णु जी अपने सुदर्शन चक्र से सती की लाश को खंड-खंड कर देते हैं। इस प्रकार सती के विभिन्न अंग तथा आभूषणों के विभिन्न स्थानों पर गिरने से वे स्थान शक्तिपीठ की महिमा में युक्त हो गये। इस प्रकार 51 शक्तिपीठों का निर्माण हो गया। विभिन्न अंग के खंड-खंड में से सती का सिर सुरकुट पर्वत पर गिरा, तब से इस जगह का नाम सुरकंडा पड़ गया, जो बाद में सिद्धपीठ/शक्तिपीठ सुरकंडा के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
सती की लाश न रह जाने पर भगवान् शिव ने जब व्याकुलतापूर्वक देवताओं से प्रश्न किया तो देवताओं ने उन्हें सारी बात बतायी। इस पर निःश्वास छोड़ते हुए भगवान् शिव ने भगवान विष्णु को त्रेता युग में सूर्यवंश में अवतार लेकर इसी प्रकार पत्नी से वियुक्त होने का शाप दे दिया और फिर स्वयं 51 शक्तिपीठों में सर्वप्रधान ‘कामरूप’ में जाकर भगवती की आराधना की और जहा उन्हें प्रकृति के द्वारा अगली बार हिमालय के घर में पार्वती के रूप में पुनः उनकी पत्नी बनने का वर प्राप्त हुआ। इस प्रकार यही सती अगले जन्म में पार्वती के रूप में हिमालय की पुत्री बनकर पुनः भगवान शिव को पत्नी रूप में प्राप्त हो गयी।
सिद्धपीठ माँ सुरकंडा देवी मंदिर (Maa Surkanda Devi Temple) केवल धार्मिक जगह ही नहीं हैं, बल्कि यह एक ऐसी खूबसूरत जगह भी है, जहां हर कोई बार-बार आना चाहेगा। सबसे ऊंची चोटी होने के कारण यहां से चारों टिहरी से लेकर धनौल्टी (Dhanaulti) ओर पहाड़ो की रानी मसूरी (mussoorie) की खूबसूरती को निहारा जा सकता है। यहां से जनवरी माह में पड़ने वाली उच्च हिमालय की बर्फीली चोटियों के अलावा बदरीनाथ, कपकोट, गंगोत्री, नंदीदेवी, गौरीशंकर पर्वत, चौखंबा दून घाटी (Doon Ghati) आदि स्थान दिखाई देते हैं।
सिद्धपीठ माँ सुरकंडा देवी मंदिर का इतिहास (History of Siddhpeetha Ma Surkanda Devi Temple)
देहरादून (dehradun) के धनोल्टी मसूरी रोड (Dhanaulti mussoorie road) में पड़ने वाला सिद्धपीठ मां सुरकंडा मंदिर (Maa Surkanda Devi Temple) इकलौता ऐसा शक्तिपीठ है, जहां गंगा दशहरा के मौके पर मेला लगता है। जो हर साल मई और जून के बीच होता है। मान्यता है कि जब राजा भागीरथ गंगा को पृथ्वी पर लाए थे, तो उस समय शिव की जटाओं से गंगा की एक घारा निकलकर सुरकुट पर्वत (Surkut Mountain) पर गिरी। जिसके प्रमाण के रूप में मंदिर के नीचे की पहाड़ी पर जलस्रोत फूटता है। वैसे तो मां के दर्शन पूरे साल कर पुण्य लाभ अर्जित किया जा सकता है, लेकिन गंगा दशहरा व नवरात्र पर सिद्धपीठ माँ सुरकंडा देवी मंदिर के दर्शनों का विशेष महत्व बताया गया है।
इन अवसरों पर मां के दर्शन करने से समस्त पाप मिट जाते हैं और सभी मनोकामना पूर्ण होती है। इसलिए गंगा दशहरा व नवरात्र पर मंदिर में भारी संख्या में श्रद्धालु और दूर दूर से पर्यटक दर्शन करने आते हैं। सिद्धपीठ माँ सुरकंडा देवी मंदिर के कपाट खुलने का समय हर वर्ष भर श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है। पर्यटक अक्सर यहाँ जनवरी माह में पड़ने वाले पहली पहली बर्फ़बारी देखने के लिए दूर दूर से चले आते है।
सिद्धपीठ माँ सुरकंडा देवी मंदिर कैसे पहुचें ? (How to reach Siddhpeeth Maa Surkanda Devi Temple?)
सिद्धपीठ माँ सुरकंडा देवी मंदिर (Siddhpeeth Maa Surkanda Devi Temple) के लिए देहरादून मसूरी और ऋषिकेश आदि जगह से कद्दूखाल के लिए वाहनों का आना जाना रहता हैं कद्दूखाल में पहुंचने और उसके बाद करीब डेढ़ किमी की खड़ी चढ़ाई चढ़कर मंदिर तक पहुंचते हैं। जिन लोगो को चढ़ाई चढ़ने में परिशानी होती है उनके लिए कद्दूखाल से मंदिर आने-जाने के लिए घोड़े भी उपलब्ध रहते हैं और अब यहाँ सरकार दवारा रोप-वे भी बन रहा है।
रोड मैप | देहरादून ➤ मसूरी ➤ धनोल्टी ➤ कद्दूखाल ➤ सिद्धपीठ माँ सुरकंडा देवी मंदिर |
रोड मैप | हरिद्वार ➤ ऋषिकेश ➤ चंबा ➤ कनताल ➤ कद्दूखाल ➤ सिद्धपीठ माँ सुरकंडा देवी मंदिर |
बाहर से आने वाले यात्री और पर्यटक ऋषिकेश (Rishikesh) से चंबा जो की लगभग 64 किमी और चंबा (chamba) से कद्दूखाल लगभग 20 किमी वाहन से आ जा सकते हैं। यहाँ वाहन दिन में हर समय मिल जाते हैं। इसके अलावा देहरादून से मसूरी (लगभग 35 किमी) होकर करीब 60 किमी की दूरी तय कर कद्दूखाल पहुंच सकते हैं।