देवप्रयाग (Devprayag)
उत्तराखंड के सभी शहरों का स्वयं का एक इतिहास है, इसी क्रम में देवप्रयाग (Devprayag) शहर का भी अपना एक अलग और अनोखा इतिहास है। ऋषिकेश (Rishikesh) से 70 किमी दूर स्थित देवप्रयाग नगर ने आधुनिक युग में भी अपने पुराने वैभव को नहीं खोया। देवप्रयाग उत्तराखण्ड राज्य के टिहरी जिले में स्थित एक नगर एवं प्रसिद्ध तीर्थस्थान है। यह अलकनंदा तथा भागीरथी नदियों के संगम पर स्थित है। इसी संगम स्थल के बाद इस नदी को पहली बार ‘गंगा’ के नाम से जाना गया। यहाँ हिंदू तीर्थयात्री भारत के कोने कोने से आते हैं। देवप्रयाग अलकनंदा और भागीरथी नदियों के संगम पर बसा है। यहीं से दोनों नदियों की सम्मिलित धारा ‘पवित्र गंगा’ कहलाती है। प्राचीन हिंदू मंदिर के कारण इस तीर्थस्थान का विशेष महत्व है।
देवप्रयाग (Devprayag) की पौराणिक कथा एवम मान्यताएं
गढ़वाल क्षेत्र में मान्यतानुसार भगीरथी नदी (Bhagirathi River) को “सास” तथा अलकनंदा नदी (Alaknanda River) को “बहू” कहा जाता है, यह मिलन “सास-बहू का संगम” भी कहलाता है। यहां के मुख्य आकर्षण में संगम के अलावा एक शिव मंदिर तथा रघुनाथ मंदिर हैं जिनमें रघुनाथ मंदिर द्रविड शैली से निर्मित है। देवप्रयाग प्राकृतिक संपदा से परिपूर्ण है। यहां का सौन्दर्य अद्वितीय और आकर्षित करने वाली है। निकटवर्ती डंडा नागराज मंदिर और चंद्रवदनी मंदिर भी यह की दर्शनीय स्थान हैं। देवप्रयाग को ‘सुदर्शन क्षेत्र’ भी कहा जाता है। यहां कौवे दिखायी नहीं देते, जो की एक आश्चर्य की बात है। रघुनाथजी के मंदिर के अलावा, बैताल कुंड, ब्रह्म कुंड, सूर्य कुंड और वाशिष्ठ कुंड शहर में हैं; इन्द्राद्युम्न तीर्थ, पुश्यामल तीर्थ, वरह तीर्थ; पुष्प वाटिका; बैताल शिला और वरह शिला; भैरव, भूषण, दुर्गा और विश्वेश्वर के मंदिरों के अलावा भरत को समर्पित एक मंदिर भी है| यहाँ बैताल शिला पर स्नान से कुष्ठ रोग का इलाज होने का दावा भी किया जाता है। देवप्रयाग के समीप ही दशरथान्चल नामक पहाड़ी भी है जिसमे एक चट्टान को दशरथ शिला कहा जाता है, मान्यता है कि इसी शिला पर राजा दशरथ ने ध्यान एवं तप किया था| इस पहाड़ी से एक धारा भी बहती है जिसका नाम राजा दशरथ की पुत्री शांता के नाम पर शांता है|
मान्यतानुसार अलकनंदा नदी के पांच पवित्र संगम तीर्थों में एक देवप्रयाग (Devprayag) को ऋषि देव शर्मा के नाम से भी जाना जाता है जिन्होने यहाँ तपस्या करके भगवान के दर्शन किये थे| इस नगर की अलौकिक एवं दैवीय सुन्दरता कई धार्मिक पर्यटकों को आकर्षित करती है| ये भी माना गया है की यहाँ भगवान् राम एवं राजा दशरथ ने तप किया था | अपने मन में भक्ति एवं विश्वास ले कर आये हुए पर्यटकों के दर्शनार्थ यहाँ रघुनाथ जी का दस हज़ार साल पुराना मंदिर स्थित है | संगम से ऊपर पुराने पत्थरों से बने इस मंदिर में एक अनियमित पिरामिड के रूप में एक गुम्बद है | पवित्र भागीरथी एवं अलकनंदा नदियों के संगम स्थल पर चट्टान के द्वारा दो पवित्र धाराओं के कुण्ड या घाटियों का निर्माण होता है जो की भागीरथी नदी पर ब्रह्म कुण्ड एवं अलकनंदा नदी पर वशिस्ठ कुण्ड के रूप में जानी जाती हैं |
हरि के पांच अवतारों का संबंध :
देवप्रयाग से भगवान विष्णु के श्रीराम समेत पांच अवतारों का संबंध माना गया है । जिस स्थान पर वे वराहके रूप में प्रकट हुए उसे वराहशिला और जहां वामन रूप में प्रकट हुए , उसे वामन गुफा कहते हैं। देवप्रयाग के निकट नृसिंहाचल पर्वत के शिखर पर भगवान विष्णु नृसिंहरूप में शोभित हैं । इस पर्वत का आधार स्थल परशुराम की तपोस्थली थी , जिन्होंने अपने पितृहता राजा सहस्रबाहु को मारने से पूर्व यहां तप किया । इसके निकट ही शिव तीर्थ में श्रीराम की बहन शांता ने श्रृंगी मुनि से विवाह करने के लिए तपस्या की थी । श्रृंगी मुनि के यज्ञ के फलस्वरूपही दशरथ को श्रीराम पुत्र के रूप में प्राप्त हुए । श्रीराम के गुरु भी इसी स्थान पर रहे थे , जिसे वशिष्ट गुफा कहते हैं।गगा के उत्तर में एक पर्वत को राजा दशरथ की तपोस्थली माना जाता है।देवप्रयाग जिस पहाडी पर अवस्थित है उसे गिद्धांचल कहते है । यह स्थान जटायु की तपोभूमि थी । पहाड़ी के आधार स्थल पर श्रीराम ने एक सुदर स्त्री किन्नर को मुक्त किया था , जो ब्रह्मा के शाप से मकड़ी में परिवर्तित हो गई थी । इसी स्थान के निकट एक स्थान पर ओडिसा के राजा इंद्रद्युम ने भगवान विष्णु की आराधाना की थी ।
स्कंद पुराण में देवप्रयाग पर 11 अध्याय
भारत व नेपाल के 108 दिव्य धार्मिक स्थलों में देवप्रयाग (Devprayag) का नाम आदर से लिया जाता है। यहीं अलकनंदा व भागीरथी नदी के संगम पर पवित्र गंगा नदी का उद्भव होता है। इसी कारण देवप्रयाग को पंच प्रयागों में सबसे अधिक महत्व मिला। “स्कंद पुराण” के केदारखंड में देवप्रयाग पर 11 अध्याय हैं । कहते हैं कि ब्रह्मा ने यहां दस हजार वर्षों तक भगवान विष्णु की आराधाना कर उनसे सुदर्शन चक्र प्राप्त किया। इसीलिए देवप्रयाग को ब्रह्मतीर्थ व सुदर्शन क्षेत्र भी कहा गया। मान्यता यह भी है कि मुनि देव शर्मा के 11 हजार वर्षों तक तप करने के बाद भगवान विष्णु यहां प्रकट हुए । उन्होंने देव शर्मा को त्रेतायुग में देवप्रयाग लौटने का वचन दिया और रामावतार में देवप्रयाग आकर उसे निभाया भी। कहते है कि श्रीराम ने ही मुनि देव शर्मा के नाम पर इस स्थान को देवप्रयाग नाम दिया। देवप्रयाग के पूर्व में धनेश्वर, दक्षिण में ताडेश्वर , पश्चिम में तांतेश्वर व उत्तर में बालेश्वर मंदिर और केंद्र में आदि विश्वेश्वर मंदिर स्थित है । ऐसी भी मान्यता है कि यहां गंगाजल के भीतर भी एक शिवलिंग मौजूद है।
कैसे पहुंचें
बाय एयर : देहरादून स्थित जौलीग्रांट निकटतम हवाई अड्डा है जो यहाँ से 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है |
ट्रेन द्वारा : ऋषिकेश में निकटतम रेलवे स्टेशन है जो यहाँ से 71 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है |
सड़क के द्वारा : देवप्रयाग (Devprayag) शहर ऋषिकेश बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग 58 पर स्थित है एवं सड़क मार्ग के द्वारा ऋषिकेश, श्रीनगर आदि अन्य शहरों से जुड़ा है | देवप्रयाग राष्ट्रीय राजमार्ग NH58 पर स्थित है जो दिल्ली को भारत-तिब्बत सीमा के पास उत्तराखंड में बद्रीनाथ और माना दर्रा से जोड़ता है। इसलिए, जो भी बसें और वाहन नई दिल्ली से बद्रीनाथ के रास्ते हरिद्वार और ऋषिकेश के तीर्थयात्रियों को गर्मी के महीनों में ले जाते हैं वे देवप्रयाग से होकर जोशीमठ और आगे उत्तर की ओर जाते हैं। ऋषिकेश देवप्रयाग की सड़क यात्रा के लिए प्रमुख प्रारंभिक स्थान है और ऋषिकेश बस स्टेशन से देवप्रयाग के लिए नियमित बसें संचालित होती हैं। ऋषिकेश से देवप्रयाग की सड़क की दूरी 74 किमी है।